" .....बूढे कामचोर काका का महीने में तीसरी बार टूटा चश्मा बनवाकर .. बेराजगार मझला घर में घुसता हुआ काका का फ़िर वही प्रलाप सुना '......हमारा जमाना ....आजकल के बच्चे.....'..! " #श्रीश पाठक प्रखर
"...मुंबई टेरर अटैक के बाद, जबकि भारत जनवरी की ठंडक में बस ठिठुर रहा है, विश्व में दो डॉग की चर्चा है. दोनों से रिश्ता है,किसी तरह का हमारा. एक अंडर डॉग है,दूसरा स्लम डॉग:ओबामा और जमाल . .....इससे आगे केवल झूठ लिखूंगा; क्योकि हम रिश्ता खोज लेते है ,..,केवल...... ......,,,...तो नही लिखूंगा......" #श्रीश पाठक प्रखर
पाँव ; फूल पर आ गया , क्योंकि वो 'गिरा' हुआ था. ......पर ये ख़ुद तो नही गिरा होगा . ..इसका सौन्दर्य ,इसका घाती. तोड़ा; पर सजाया नहीं इसे कहीं. ...मुरझाना-सूखना तो सहज था; पर इस तरह,रौदा जाना ..... ,,...किसी ने इसे रास्ते में गिरा दिया. ..,, ,..'ठीक उन लड़कियों की तरह......................! #श्रीश पाठक प्रखर
अगल-बगल बंद केबिनों में दूर दोस्ती तलाशते लोग प्रति घंटे मात्र १० रुपये पर व्यस्त थे. नजदीकियों से नजदीकियां बढ़ाना महंगा बहुत हो गया है शायद. #श्रीश पाठक प्रखर
....कभी जब कुछ अलग सा अनुभव होने लगता है, महसूस होने लगती है,हवा की आवाज.., गूंजने लगता है सारा परिवेश, किसी अनुगूँज से ! घटने लगता है रोम रोम में एक शंखनाद , अंतस में झंकृत होने लगता है एक स्वरमय प्रस्फुटन , परिचय पाने लगता है मन, नीरवता के सौन्दर्य से , खुलने लगता है, हृदयपट स्वतःस्पंदन से जब शून्य में प्रेरणा पल्लवित होने लगती है... तो फिर तुम्हारी याद आती है...परम ! #श्रीश पाठक प्रखर