पहले पन्ने की कविता

लिखूं, कुछ डायरी के पृष्ठों पर कुछ घना-सघन, जो घटा हो..मन में या तन से इतर. लिखूं, पत्तों का सूखना या आँगन का रीतना कांव-कांव और बरगद की छांव शहर का गांव में दबे-पांव आना या गाँव का शहर के किनारे समाना या, लिखूं माँ का साल दर साल बुढाना, कमजोर नज़र और स्वेटर का बुनते जाना, मेरी शरीर पर चर्बी की परत का चढ़ना मन के बटुए का खाली होते जाना. ................................................................................ ................................................................................ ................................................................................ इस डायरी के पृष्ठों पर समानांतर रेखाएं हैं; जीवन तो खुदा हुआ है , बर-बस इसपर. अब, और इतर क्या लिखना..! #श्रीश पाठक प्रखर