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Showing posts from August 24, 2009

मिथिलेश भैया के "बिस्मिल" अखबार के लिए मैंने अपना पहला लेख लिखा...

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"हर दौर के बिस्मिल को.." बिस्मिल...यानि क्रांतिदूत..हर दौर को जरूरत होती है बिस्मिल की, क्योकि हर दौर में तब्दीलियाँ अपनी जगह बनाने को आतुर होती हैं और पुराने खंडहर अपनी जगह पर कुंडली मार बैठे होते हैं. परिवर्तन का बिगुल छेड़ बिस्मिल चले जाते हैं और पीढियां कुछ लकीरों को बार-बार पीटने लगती हैं ये मानकर की ये अंतिम सत्य हैं और समाज का भला बस ऐसे ही हो सकता है. पर हर दौर के बिस्मिल को देखना होगा कि समय का यह नया रंग किस ढंग का है, यह बाकि रंगों से कितना अलग है और कितना सामयिक व प्रासंगिक. उस नए रंग की पवित्रता चुनने की समझदारी और उसके कच्चेपन को पहचान, उसमे अतीत की परिपक्वता घोल, समाज के समक्ष परोसने की जिम्मेदारी निभानी होगी ताकि समाज हर समय में महान बना रहे. उस बिस्मिल को नए बिस्मिल बनाने का गुरुतर उत्तरदायित्व भी निभाते रहना होगा. जो युवा होगा बिस्मिल बस वही बन पायेगा. तन का युवा हो न हो पर मन का युवा होना होगा. अपनी धरोहर की पहचान और नवीनता के प्रति आकर्षण, युवापन की कसौटी होगी और उसमे अपनी मौलिकता मिलाने का जरूरी साहस अपेक्षित है. बिस्मिल बन पाने की प्रक्रिया स्व की ईमान