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Showing posts from September 10, 2009

आधी रात हो चली है.

आधी रात हो चली है. दिल्ली में झमा-झम बारिश हो रही है. काश के ये बारीश जुलाई-अगस्त में हुई होती तो मेरे पापाजी को कड़ी धूप में खेतों में पानी ना चलवाना पड़ा होता.उनकी तबियत ख़राब हुई सो अलग.JNU के इस ब्रह्मपुत्र हॉस्टल में बैठा-बैठा मै कई बार ये सोच रहा था कि आज का अजीब दिन है.भगदड़ से ५ छोटी लड़कियां मर गयीं तो कैम्पस में भी एक स्टुडेंट ने उचित हैल्थ फसिलिटी के अभाव में दम तोड़ दिया. पूरे दिन कई बातें सोचता रहा. मसलन , अब कुछ नौकरी-वौकरी के बारे में सोचना पड़ेगा.आस-पड़ोस में लड़के सारे काबिल निकल रहे है एक मै हूँ कि पढ़ाई बढ़ती ही जा रही है. एम.फिल. करके JNU से सोचा था कि किसी ना किसी काम का तो होई जाऊंगा...पर एकदम से ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा. इस प्रसिद्द कैम्पस का भी एक मिथक जैसा कलेवर बन पड़ा था,,टूटा. वैसे ढेर सारी खास बातें है इस कैम्पस में पर धीरे - धीरे यहाँ भी अनचाही तब्दीलियाँ आती जा रही हैं, इसका सबसे प्रमुख कारण है नयी आने वाली फैकल्टी में आचार्यत्व का अभाव. वजह...बेहद फोर्मल के कलेवर में होने वाली अपारदर्शी चयन प्रक्रिया.अब यहाँ भी भाई-भतीजावाद दिख जायेगा और देश की कलुषित राज

"तुम मुस्कुरा रही हो, गंभीर.."

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       विस्तृत प्रांगण   तिरछी लम्बी पगडंडी   अभी बस हलकी चहल-पहल , विश्वविद्यालय में,  दूर; उस सिरे से आती तुम   गंभीर, किन्तु सौम्य,  मद्धिम-मद्धिम तुम में एक मीठा तनाव है, शायद,  हर एक-एक कदम पर जैसे सुलझा रही हो, एक-एक प्रश्न.   तुम मुस्कुरा रही हो; गंभीर   तुम्हे पता हो, जैसे चंचल रहस्य.   तुम्हें 'पहचान' नहीं सका था, मै,   क्योंकि; देखा ही पहली बार तुम्हें 'इसतरह'   वजह जो थी पहली बार तुम मेरे लिए...   अब नहीं लिख सकता उस महसूसे को ,,,   क्योंकि सारे शब्द बासी हैं,,   उनका प्रयोग पहले ही कर लिया गया है, अन्यत्र. अनगिन लोगों के द्वारा...... ! #श्रीश पाठक प्रखर