Posts

Showing posts from October 4, 2009

पुनर्पाठ...तुम्हारा..

(१)   मै; तुम्हे शिद्दत से चाहता हूँ,  पर तुम नहीं.   आत्मविश्वास ने समाधान किया: 'सफल हो जाने पर कौन नहीं चाहेगा मुझे,,,? "....पर उन्ही लोगो में पाकर क्या मै चाह सकूँगा ..तब..तुम्हे..?  (२)  तुमने जब टटोला  तो मैंने महसूस किया..  अपना अस्तित्व   सर पर हाथ प्यार से फेरा तुमने  तो. महसूस किया मैंने अपना उन्नत माथा..  "पर मै जानता हूँ; तुम्हे पाने के लिए सीना चौड़ा होना चाहिए..." #श्रीश पाठक प्रखर