निकल आते हैं आंसू हंसते-हंसते,ये किस गम की कसक है हर खुशी में .
निदा फाज़ली की नज्में कुछ इस तरह चर्चित हैं कि अपने आस-पास साधारण, सामान्य हर तरह का आदमी उनकी पंक्तियाँ कह रहा होता है पर अक्सर सुनाने वाले और सुनने वाले दोनों को ही पता नहीं होता कि ये निदा फाज़ली की लाइनें हैं...निदा फाज़ली उन चुनिन्दा लोगों में शामिल हैं जिन्होंने इस पाप-कल्चर के युग में भी युवाओं को नज्में गुनगुनाने पर मजबूर कर दिया है.. आज उनके जन्मदिवस पर निदा फाज़ली साहब की ही कुछ लाइनें ब्लॉग पर डाल रहा हूँ, जिन्हें मेरे अनन्य मित्र श्री अंशुमाली ने अरसों पहले मेरी डायरी पर लिखा था... " निकल आते हैं आंसू हंसते-हंसते, ये किस गम की कसक है हर खुशी में गुजर जाती है यूं ही उम्र सारी; किसी को ढूँढते है हम किसी में. बहुत मुश्किल है बंजारा मिजाजी; सलीका चाहिए आवारगी में." " फासला नज़रों का धोखा भी हो सकता है, चाँद जब चमकें तो जरा हाथ बढाकर देखो.." आदरणीय निदा फाज़ली साहब को जन्मदिन की अनगिन शुभकामनायें......