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Showing posts from October 13, 2009

कैसा लगता है, जब फुटपाथ पर कोई लड़की सिगरेट बेचती है...?

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सचमुच एक दृश्य देखा  मैंने दिल्ली के फुटपाथ  पर...और फिर... . कैसा लगता है, जब फुटपाथ पर कोई लड़की सिगरेट बेचती है...?  पर यहाँ लड़की अपनी झोपड़ी के पास मजबूत धागों में गुटखे व चट्टे पर  सिगरेट, पान, सलाई सजा रही है;  अपने पैरों से लाचार भाई के लिए...!  उसे चौका बर्तन करने जाना है,  शाम हो गयी है, उसे दौड़-दौड़ कई काम निपटाने हैं,  उसका छोटा चल नहीं सकता. हाथ सलामत हैं उसके पर,  इबादत के लिए, खाने के लिए, पान लगाने के लिए और कभी कभी रात के सन्नाटों में बहते उसके आँसू पोछने के लिए....   संस्कार,ऊंची अट्टालिकाओं, पैनी शिक्षा, मंहगे कपड़ों के मोहताज नहीं,  ये माता-पिता से विरासत में मिलते हैं....  'और भी' मिला है उन दोनों को 'विरासत' में.   जाने कब कैसे मर गयी माँ और दे गयी दीदी को काम, जाने कितने घरों के... .! गुटखा खाते, बेचते बाप ने गुटखे से पक्की यारी निभायी,  बड़ों की तरह धोखा नहीं दिया....बेवफाई नहीं की.  जान दे दी और कर दी अपनी अगली पीढ़ी भी गुटखे को दान.   आज दीदी रो रही है.  नहीं, नहीं, भूखे नहीं है हम,  अब हमने शाख के ऊंचे आम तोड़ना सीख लिया है.  दीदी रो रही है