अब सवाल ज्यादा सुकून देते हैं.
मुझे पता है कि मै बस लिखने लगता हूँ. ईमानदारी से मुझे शिल्प का अभ्यास नहीं है. गलतियाँ बर्दाश्त करियेगा..और बदले में मुझे एक मुस्कान दीजियेगा... अब सवाल ज्यादा सुकून देते हैं. अब सवाल ज्यादा सुकून देते हैं. राख, शोलों से ज्यादा जुनून देते हैं. यार तुम,खिलो सहर में भी शायद, गैर वो हर वक़्त चुभने का यकीं देते हैं. हमारी खुशियों में भी बेशक हंसा ना पाते हो, तुम्हारे कह-कहे आँखों को भरपूर नमी देते हैं. अँधेरे भी ना दे सको तुम मुझे सोने के लिए, बेदर्द तन्हाईयाँ ही इसके लिए क्या खूब जमीं देते हैं. मेरी साख पर नज़र है शिद्दत से तुम्हारी, तुम्हारी कनखियाँ मुझे फिरसे वजूद देते हैं. #श्रीश पाठक प्रखर चित्र साभार:गूगल