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Showing posts from 2012

गंगा जल वाले प्रकाश झा

..गंगा जल के बाद से प्रकाश झा अपनी फिल्मों में एक आदर्श विद्यार्थी की भांति किसी मुद्दे को डील करते हैं. विद्यार्थी बचता है एक राय देने से , पक्ष -विपक्ष दोनों की बातें अपने उत्तर में डाल देता है, परीक्षक स्वयं निर्णय करे और अंक दे..!  झा जी अब यही साध रहे हैं. यहाँ झा जी सेफ लाइन लेकर अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना चाहते हैं. (हलांकि यह भी उनका रोमानी भ्रम है-इससे उनका निजी फ्लेवर ही प्रभावित होता जा रहा है ). ये मानता हूँ कि जैसे मुद्दे वो चुन रहे हैं उसमें एक लाइन लेना आसान नही  है..पर यहीं तो कसौटी है. यही चीज तो आपको ख़ास निर्देशक बनाती है.  आप Documentary तो बना नहीं रहे.....कल को एक समझदार, दुनियादार कवि, अपनी कविताओं में भी कोई स्टैंड ना ले, बस दो विरोधी पक्ष उछाल दे किसी मुद्दे का ...तो वो भी तो खटकेगा....! फिल्म के आखिर में जब कोई निष्कर्ष नहीं आता कि कौन गलत और कौन सही, अथवा इतना ही कि कौन अधिक ग़लत और कौन अधिक सही ...तो फिर फिल्म खटकने लगती है..दर्शक अचानक संतोष करता है कि -अरे वो तो सिनेमा देखने आया था-मनोरंजन करने आया था...पर समीक्षक (अथवा सजग दर्शक) इसे पचा नहीं पाते.  गंगा जल

एक मानसिक कलोलबाजी

च....च...अरे नहीं, रिश्ते, उम्र की तरह नही होते, कुछ समझदार-मैच्योर लोग समझते हैं कि हर रिश्तों की उम्र होती है। उन्हें किसी भी नाजुक रिश्तों को टूटना, सिमटना या फिर बिखरना किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया के मानिंद, सामान्य लगता है...उन्हें नहीं पता शायद रिश्तों की अन्यान्य प्रक्रिया फिर वैसे ही कभी भी दुहराई नहीं जा सकती और उसकी ऊष्मा किसी जार विशेष में किसी खास केमिकल के साथ संरक्षित भी नहीं की जा सकती। (...एक मानसिक कलोलबाजी...:)   ) #श्रीशउवाच 

Para-Military Forces of India: Vanguard of Internal Security of India

Abstract Today, India is bordered by turbulent states-Pakistan, Nepal, Bangladesh and Myanmar.Turbulence has permeated through India's porous borders in the form of arms and narcotics to finance insurgents, militants, terrorists and religious fundamentalists.This endless internal turbulence in India's also inter-linked with external factors. The grim reality is that the unending turbulence will continue afflicted our land and sea frontiers and airspace.Therefore, as change has been said to be the only constant in the order of things, we have to adapt our attitudes and policies to the new realities.The rapidly developing political, economic and military strength of India, if unfortunately accompanied by a fragile internal security scenario, could become a significant factor for instability in the region and in the world.Though, there are various essential ingredients of internal security situation. Equally important is to see or assess the health of the internal security mechani

Security Challenges: India's Borders with Pakistan and its Management

Abstract The strategic importance of Pakistan is unique because of being a close neighbour toMiddle East, having a common border with China, India, Iran, Afghanistan and less than onehundred kilometre distance from Central Asian state of Uzbekistan. Bridge between South Asiaand South West Asia; Iran and Afghanistan are energy abundant while India and China aresimply lacking of.India, a nation of one billion people and the largest democracy in the world, is fast growing to become the largest economy in Asia after China and Japan. As a result of its rapid growth accompanied by political stability, the country is presumed to be a significant factor in determining the course of overall growth trajectory of Asia. https://www.academia.edu/35167979/Security_Challenges_Indias_Borders_with_Pakistan_and_its_Management_Security_Challenges_Indias_Borders_with_Pakistan_and_its_Management_A_Research_Paper

देश परिवार समाज : एक विमर्श

....नवोत्पल(http://navotpal.wall.fm/forum/topic/2?&page=1) पर हुई एक पुरानी चर्चा को यहाँ रख रहा हूँ, इसमें श्याम जी ने बड़े करीने से कुछ चीजें रखी हैं, शायद मित्रों को पसंद आये...! अंकित ...... ......The Real Scholar Aug 14 '10 Message #1 सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद हैदिल पे रखकर हाथ कहिये   देश क्या आजाद है...? प्रश्न तो कई दशक पुराना है ...पर उत्तर आज तक किसी ने नहीं दिया .......क्या इस पर नावोत्पल में कुछ चर्चा करना उचित होगा? Shyam Juneja Aug 15 '10 Message #2 इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर चर्चा मैं एक शिवसूत्र से करना चाहूँगा .."धी वशात सत्व सिद्धि.. सिद्ध स्वतंत्र भाव.."हमारे यहाँ गायत्री मन्त्र में भी "धी" की ही मांग की गई है ..पंजाब में "धी" शब्द का प्रयोग बेटी के लिए किया जाता रहा है.. शायद कहीं कहीं आज भी प्रचलित है ..और शायद स्त्री के सम्मान में कही गई एक शब्द की सबसे सुन्दर कविता है यह "धी" ..क्या है धी ? कृष्ण ने गीता में जिसे "व्यवसायात्मिका बुद्धि" कहा है..कृष्णमूर्ती इसे "सजगता" कहते हैं ... आम बोल

जिंदगी के मायने

"जब एक एक कर गिर रहे हों  उम्मीदों के मकां  जब टूट रहे हों अरसों से सजाये सपने  जब ख्वाहिशों के घरौदें  साबित हों रेत से और ढहने लगें कशमकश की  लहरों से .  जब मासूम अँगुलियों के पोर फिसलने लगे उनकी दिलकश  हथेलियों की पकड़ से और  छूटने लगे सारे एहसासों की  छुअन उनके दामन से . जब बाते विसाल की महक जाती रहे  और आंसूओं की बारिश से नज़र  उनकी खारी ना हो ... उस ज़ालिम वक़्त में ऐ मेरे प्यारे दोस्त... जिंदगी के मायने ना समझाना...!!! "                                     -श्रीश पाठक 'प्रखर' 

धीरज ....

".....जीवन का शायद सबसे कठिन कार्य है धीरज रखना. खासकर जब आपको लगता है कि किसी ना किसी प्रकार से आप लगातार प्रयत्नशील हैं. ये धीरज रखना, किसी साधारण व्यक्ति से नहीं हो सकता. बचपन में जब किसी परिणाम पर टकटकी लगा के उद्विग्न रहा करता तो बड़े बुजुर्ग समझाते कि धीरज धारण करो, बड़ी झुंझलाहट होती उस वक़्त. सारी पढ़ाई सारा ज्ञान शायद विपरीत परिस्थितियों में आपा ना खोने के लिए ही प्रशिक्षित करता है..! धीरज भी अभ्यास मांगता है...यूँ ही नहीं सध जाता...! चुप्पी धारण कर लेना धीरज नहीं है. सकारात्मकता के साथ शांतिपूर्वक सतत प्रयत्नशील रहना, धैर्य है. इस अवस्था में ही 'कर्मण्ये वाधिकारस्ते' का सही अर्थ स्पष्ट होता है.....!!! " ‪#‎ श्रीशउवाच‬

अजीब सी उधेड़बुन ...

अजीब सी उधेड़बुन मची रहती है ज़ेहन में. लगता है जैसे कितना कुछ करना हो और कितना कम हो पा रहा हो. सीखता तो रोज ही कुछ न कुछ हूँ ....न ...न ...ये ज़िंदगी रोज ही कुछ न कुछ सीखाती रहती है. क्या होगा सब कुछ सीखकर. क्या होगा ज्यादातर जानकर.....! शायद ये उधेड़बुन मिट जाए... पर ऐसा होता नही.  थोड़ी जानकारी और ज्यादा के लिए प्रेरित करती है...ज्यादा जानकारी और ज्यादा के लिए हिलोर मारती है....हम बूंद ही बने रहते हैं सामने विशाल सागर दिखता रहता है. हम बूंदों के विभिन्न रंग हो सकते हैं होते ही हैं हमारे सबके दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न...! किन्तु मूल स्वरुप में हम रहते हैं बूंद ही. मै नियतिवादी या निराशावादी हो रहा हूँ क्या जब मै स्वयम कों बूंद से बड़ा नही समझ रहा हूँ. पर मै यों ही नही कह रहा ...! आज तक किसी भी विषय पर मै पूरी तरह संतुष्ट नही रहा...मैंने किसी एक विषय पर बहुतेरे शोध किये, लोगों से पूछ-ताछ की...पर अंत तक कोई ना कोई प्रश्न उभरता रहा और वह अनुत्तरित ही रहा. कई बार लगा....उपलब्धि ये नए-नए प्रश्न ही रहे जिनकी प्रारंभ  में कल्पना भी नही हो सकती थी. जानना जैसे यह ही रहा हो कि हर स्तर पर कुछ जानन