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Showing posts from December 29, 2012

गंगा जल वाले प्रकाश झा

..गंगा जल के बाद से प्रकाश झा अपनी फिल्मों में एक आदर्श विद्यार्थी की भांति किसी मुद्दे को डील करते हैं. विद्यार्थी बचता है एक राय देने से , पक्ष -विपक्ष दोनों की बातें अपने उत्तर में डाल देता है, परीक्षक स्वयं निर्णय करे और अंक दे..!  झा जी अब यही साध रहे हैं. यहाँ झा जी सेफ लाइन लेकर अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना चाहते हैं. (हलांकि यह भी उनका रोमानी भ्रम है-इससे उनका निजी फ्लेवर ही प्रभावित होता जा रहा है ). ये मानता हूँ कि जैसे मुद्दे वो चुन रहे हैं उसमें एक लाइन लेना आसान नही  है..पर यहीं तो कसौटी है. यही चीज तो आपको ख़ास निर्देशक बनाती है.  आप Documentary तो बना नहीं रहे.....कल को एक समझदार, दुनियादार कवि, अपनी कविताओं में भी कोई स्टैंड ना ले, बस दो विरोधी पक्ष उछाल दे किसी मुद्दे का ...तो वो भी तो खटकेगा....! फिल्म के आखिर में जब कोई निष्कर्ष नहीं आता कि कौन गलत और कौन सही, अथवा इतना ही कि कौन अधिक ग़लत और कौन अधिक सही ...तो फिर फिल्म खटकने लगती है..दर्शक अचानक संतोष करता है कि -अरे वो तो सिनेमा देखने आया था-मनोरंजन करने आया था...पर समीक्षक (अथवा सजग दर्शक) इसे पचा नहीं पाते.  गंगा जल