दोस्त.....!
दोस्त सुशील के वर्षगाँठ पर मेरी ये भेंट : दोस्त.....! जाने कितने भरे-पूरे-अधूरे ख्वाब देखे हमने साथ-साथ, मंज़िल दर मंज़िल जाने कितनी काट दीं रातें हमने करके बातें,इस जहां से उस जहां की, महक दर महक जाने कितनों को थमा दी तुमने उलफत की मशाल, उमर दर उमर अब ठहर कर क्षण भर देख लो खुद को मुकम्मल ख़रच ना हो जाओ, बेईमान दुनिया की खातिर सांस दर सांस क्योंकि चाहता हूँ मै बंशी, कृष्नेत की गूँजें चौखट दर चौखट मंदिर दर मंदिर और हाँ, इश्क़ दर इश्क़ भी।