परिवर्तन और विरोधाभास
......सतत दबावों में तोष के लिए सहज ही जो समानांतर मै रच लेता हूँ मानस में...कहीं...., तू उससे ही तो नहीं ना रच लेता है 'भविष्य' ...बता ? ...और तो मुझे लगता है जैसे-परिवर्तन और विरोधाभास बस दो ही धर्म हैं जीवन के ..! # श्रीशउवाच