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Showing posts from April 13, 2015

जब भी मै कुछ गंभीर लिखता हूँ, मै स्पष्ट होता हूँ कि...

जब भी मै कुछ गंभीर लिखता हूँ, मै स्पष्ट होता हूँ कि 'मुझे भविष्य में कैसा समाज चाहिए?' भयाक्रांत, असुरक्षित, असंगठित, विभाजित, संकीर्ण अथवा समरस, संगठित, समन्वित, सतत, विकासोन्मुख ....! ऐसा सोचते ही मेरी भाषा संयत हो जाती है. मै सहनशील एवं साहसी हो जाता हूँ. मै आलोचना का स्वागत करने लग जाता हूँ, क्योंकि यह वो आयाम होती है, जो मुझसे संभवतः छूट जाती है. यह सोच मुझे आज की विभिन्न और बिखरी हुई कई समस्यायों के त्वरित हल से बचाती है, मध्य मार्ग की ओर ले जाती है, उनके एक सूत्रता  को पकड़ पाती है. मुझे भारत के भविष्य में विश्वास है, इसलिए मै कोशिश करता हूँ कि मेरे अध्ययन एवं ऑब्जरवेशन का कम से कम दो या अधिक स्रोत अवश्य हो. अतीत से सीख लेता हूँ, विभेद और वैमनस्य छांटकर वहीँ छोड़ देता हूँ. मै चुनता हूँ, थोड़ी सी बुरी यादों के मुकाबले थोड़ी सी अच्छी यादों को..! आँख-कान खुली रखता हूँ, क्योंकि भ्रमित कोई भी हो सकता है जिसने किसी एक विश्वास को ही अपना सर्वस्व बना लिया हो . जानता हूँ, इसलिए चौकन्ना रहता हूँ कि जहाँ मै खड़ा हूँ, वहां के अपने बायसेस हो सकते हैं, दूसरों के भी हो सकते हैं...अपने बायसे