स्वतंत्रता व सुव्यवस्था के नोट्स : श्रीश
मन में कई विचार गोते लगा रहे हैं. पर सबसे पहले श्याम जी द्वारा लिखे गए वे शब्द और वाक्य जिन्हें मैंने अपनी डायरी में लिख लिए हैं... ये लाइनें शून्यकाल में मेरा बहुत साथ देंगी. और ये पंक्तियाँ सूत्रवाक्य हैं..कई कुंजियों का समवेत छल्ला है..उन्हें देखें: " जब चर्चा चल ही पड़ी है तो लगते हाथ बहुत पहले" सारिका" में पढ़ी धर्म की वह परिभाषा भी उद्दृत कर दूं जो पांच दशकों के बाद भी मुझे भूली नहीं .."अनासक्त विवेक से समष्टि कल्याण के हेतु किया जाने वाला कोई भी कर्म धर्म है." " यह मन कैसे बनता है ? निश्चित रूप से क्रिया प्रतिक्रिया ( stimulus and response cycle) चक्रों से मन निर्मित होता है." " वृत्त की आवृति =वृति" " उन्होनें आदतों के जमावड़े को कुण्डलिनी कहा है" " जितनी लघु , संकुचित और सीमित जीवन-दृष्टि ; उतनी ही तेज़ी से भागता है समय.. जीवन-दृष्टि जितनी व्यापक होती चली जाती है ; समय की गति भी उसी अनुपात में धीमी होती चली जाती है .. जब दृष्टि अस्तित्व की व्यापकता को पा लेती है..तब समय ठहर जाता है.. विलीन हो जाता है ..आदमी के गणि