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माहौलिया तंत्र औ लाईन में लगा लोक

For: newscaptured.com डॉ. श्रीश पाठक कहते हैं कि लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन है। सरकारें जनता के लिए काम करती लगती हैं। लोगों को लगते रहना चाहिए कि यह उनकी सरकार है। कभी इंडिया शाईन कर रहा था, लोगों को लगा नहीं शायद। भारत-निर्माण भी हो रहा था, लोगों को लगा नहीं शायद। ‘लोग’ से ज्यादा ‘लगना’ महत्वपूर्ण है। माहौल सब कुछ है । इंडिया चमकाने में मेहनत है, इसकी जरुरत नहीं है; भारत निर्माण करने में मेहनत है, इसकी भी जरुरत नहीं है-माहौल पुरजोर बनना चाहिए कि इंडिया चमक रहा है और हो रहा भारत निर्माण, आगे बढ़ रहा उत्तम प्रदेश, बदल रहा बिहार.....! ये सब टी.वी. पर हो रहा है। रेडिओ पर हो रहा है। लाइक हो रहा है, कमेंट हो रहा है, शेयर हो रहा है। गजब माहौल है। स्वागत है, यह एक माहौलिया लोकतंत्र है। लोग सोच रहे-हो तो रहा है। एक दिन में थोड़ी होता है, विकास। इतना कुछ इकठ्ठा है, टाईम लगता है। ऊपर जो हो-हल्ला मचता है, नीचे तक रिसता है। ऊपर कहा गया-भ्रष्टाचार है, नीचे माना गया –हाँ, अब और नहीं करना है बर्दाश्त...! ऊपर कहा गया-अपना धन विदेशों में जमा है,-नीचे माना गया-उसे लाना पड़ेगा। ऊपर कहा गया-काला धन आस-पास

वो जो एक झोंक में

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( A Sudden Gust of Wind by :Serkan Ozkaya )   वो जो एक झोंक में हम चाहते हैं दर्द हो जाये छूमंतर, अपनी प्यारी सी जान किसी झोला छाप को आजमाइश के लिए सौंपनी होती है।   वो जो एक झोंक में ख्वाहिश है हमारी कि मिल जाये हमें खुशियां जहान की, किसी सौदागर को देती है दावत कि परोसें हम उसे अपनी लज़ीज़ नेमतें।   वो जो एक झोंक में छा जाने की है अपनी कोशिश करवायेगी बेइज्जत समझौते कई नजर उठायीं ना जायेगी, खाली करेगी खुद को खोखला।   वो जो एक झोंक में बयान की आदत है नोचेगी ज़मीर, जमींदोज होगा तखल्लुस और होगा मुश्किल ढूंढ़ना नामोनिशां।   झोंक की ना दोस्ती अच्छी ना ठीक दुश्मनी एक झोंक के प्यार पे भी क्या एतबार बस इक अमल की झोंक बेहतर जो हवा के झोंके की मानिंद भर देती है तन मन को ताजे मायनों से।   सनद रहे, वो जो एक झोंक में सब समझ लेने की बेताबी है ना, तथ्य से तर्क सोख, घटिया निष्कर्षों को उन्मादी नारों में तब्दील कर देती है।   #श्रीशउवाच