राजनीति एक शास्त्र भी है....!
"......s s ....! मिल नहीं पायी इन्क्रीमेंट, बहुत पॉलिटिक्स है..!" "सिलेंडर नहीं मिल पाया आज भी, बड़ी राजनीति है, भाई !" "पॉलिटिक्स पढ़ते हो, इसमें तुम्हारी ही कोई राजनीति होगी.....!" ये जुमले खूब सुने होंगे, आपने l और यह भी सुने होंगे- "तुम ज्यादा मत उड़ो, अच्छे से समझते हैं तुम्हारी साइकोलॉजी ......! " "अपनी इकोनॉमिक्स खंगाल लो, आर्डर देने से पहले....! " " जियोग्राफी देखी है अपनी, जो मॉडलिंग करने चले हो...! " और ये भी सुना होगा आपने कभी कभी - "तेरी पर्सनालिटी की फिजिक्स समझता हूँ, शांत ही रहो..! " "तेरी उसकी केमिस्ट्री के चर्चे हैं बड़े.....! " "तेरा मैथ कमजोर है पर गणित बहुत तेज है, शातिर कहीं का ....!" हम सामान्य व्यवहार में शब्दों का बड़ा ही अनुशासनहीन प्रयोग करते हैं l इसमें इतना भी कुछ गलत नहीं l एक सीमा तक इससे भाषा को प्रवाह मिलता है, नए प्रयोग उसे लोकप्रिय और समृद्ध बनाते हैं l किन्तु शब्दों का चयन वक्ता के परसेप्शन को जरुर ही स्पष्ट करता है l ऊपर लिखे वाक्य यह अवश्य बताते हैं कि वक्त