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Showing posts from 2017

सुनो बे दो हजार अट्ठारह

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सुनो भई दो हजार अट्ठारह, देखो, आराम से आना! लगे कि कुछ नया आ रहा है. फिर वही अखबार मत लाना जिसे ले जाएगा कबाड़ी वाला. लोग तो हैं ही सट्टेबाज, सत्ता की मलाई के लिए खांचा खीचने के लिए तैयार बैठे हैं. फेस्टिवल वाले देश में फेस्टिवल का धरम बताएंगे, किसी किसी दिन की जाति बतावेंगे और बंसी बजैइया के देश में बेशर्म इज्ज़त के नाम पे उसी पेड़ पे लटकावेंगे जहाँ उ चोर कपड़े लेके बैठे रहा! सुनो, इस बार मुहल्ले में भी आना चमकदार टीवी से उतरकर. देखों यों आना कि नालियाँ साफ हो जाएं, अस्पताल में दवाई मिले और पाठशाला में मिलें गुरुजी. मौका लगे तो छह लाख गावों में शैम्पू की छोटी छोटी सैशे में समाकर आना, पर आना. पता करना कि किसी गांव में सचमुच बिजली रहती कितनी देर तक है. देखना, कि नहर में पूआल रखी है या पानी भी आता है. किसी से चुपके से पूछना कि पिछले चुनाव में जो मर्डर हुआ, उसमें कुछ हुआ या फिर सब विकास ही है. अच्छा रुको रे दो हजार अट्ठारह! जरा विकास को पुचकार देना, बेचारा रूखा सूखा हुआ है. सब उसे हर सीजन में नए कपड़े पहनाकर घुमाते हैं सर पे, पर बेचारा दशकों से भूखा है. सड़क की पटरियों पे इधर उधर पोस्टर ब

2017 की विश्व राजनीति और भारत

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पंचायत टाइम्स: पहला भाग  अब जबकि पृथ्वी 2017 का अपना चक्कर पूरा ही करने वाली है, यह एक मुफीद समय है कि इस साल की विश्व-राजनीति को पीछे मुड़कर टटोला जाय, देखा जाय कि वे कौन सी घटनाएँ थीं, जिन्होंने खासा असर पैदा किया, ऐसी वे कौन सी गतिविधियाँ रहीं, जिनके जिक्र के बिना 2017 का कोई जिक्र अधूरा रहेगा और इन सबके बीच अपना भारत कैसे आगे बढ़ा ! यह एक मुश्किल काम इसलिए तो है ही कि विश्व राजनीति की बिसात बेहद लम्बी-चौड़ी है, पर असल चुनौती इसमें वैश्वीकरण की प्रक्रिया पैदा करती है। विश्व में वैश्वीकरण है, इसके अपने अच्छे-बुरे असर हैं; पर दरअसल विश्व-राजनीति का भी वैश्वीकरण हो चला है। इसका अर्थ यह है कि अब किसी भी महत्वपूर्ण वैश्विक घटना के स्थानीय निहितार्थ व प्रभाव हैं और किसी महत्वपूर्ण स्थानीय घटना के भी वैश्विक निहितार्थ व प्रभाव हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता ।संचार साधनों ने यह सुलभता तो दी है कि सभी घटनाएँ सभी स्तर पर लगभग तुरत ही उपलब्ध हैं, किन्तु इन्होने विश्व-राजनीति की जटिलताओं का और विस्तार ही किया है। इनकी अनदेखी करना सहसा विश्व-राजनीति के किसी घटना की व्याख्या में चूक जाना है

आपके सपने हैं, विश्वास सबसे पहले आपको करना है

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ये उधेड़बुन बनी रहती है कि सपने संजोये जाएँ भी कि नहीं। कुछ कहते हैं कि अपनी सीमा समझते हुए जमीन पर पाँव जमाये रखना चाहिए। लक्ष्य रीयलिस्टिक होने चाहियें। जिंदगी के खूबसूरत एहसास से परे डरे सहमे लोगों की सख्त नसीहतें अधिक मिल जाएंगी। ये जिंदगी को बस एक रेस बना छोड़ देते हैं जिसके अंत में चाहे जीत हो या हार हो, इंसान हांफने ही लगता है। इस दुनिया का सबसे उम्रदराज शख्स भी नहीं जानता कि अगले पल क्या होना है। इसलिए सपने संजोने का प्यारा जोखिम लिया जाना चाहिए। अगर आप चाहते हैं कि आपकी ज़िंदगी महज जेरोक्स बनकर न रह जाए, तो सपने संजोने चाहिए अपने। इसके फायदे अधिक हैं, नुकसान गिनती के हैं। सपनों वाला आदमी एक तरह के उत्साह में रहता है। पॉजिटिव मन के आदमी को ये दुनिया और भी प्यारी लगती है। अपने सपनों का पीछा करते हुए धीरे धीरे हमारा व्यक्तित्व निखर जाता है और यह निखार कई बार उन सपनों से अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिए सपनों की यात्रा में गिरना-उठना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि चलते रहना। घबराने की जरुरत नहीं है, हिम्मत से सपने संजोते हुए धीरे-धीरे लगातार सीखते हुए मुस्कुराते हुए यारियां नि

कुलभूषण जाधव, अजमल कसाब नहीं हैं...

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कभी भारतीय नेवी में काम कर चुका एक शख्स जो अपनी अधेड़ उम्र में ईरान जाकर कारोबार कर रहा था कि सहसा उसका अपहरण हो जाता है। पाकिस्तानी मीडिया हल्ला मचाती है कि उसने भारत के जासूस को पकड़ा है वह भी अपने प्रान्त बलूचिस्तान से। कहा जाता है कि वह रॉ का एक जासूस है, जो बलूचिस्तान में हुए कई बम विस्फोटों का जिम्मेदार है। पाकिस्तानी मार्शल कोर्ट उसे गुनहगार मानती है और फांसी की सजा सुनाती है। भारत सरकार हरकत में आती है और सजा के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस, हेग में अपील करती है। पंद्रह सदस्यीय जजों का पैनल (जिसमें भारत के जस्टिस दलवीर भंडारी भी हैं ) उस शख्स की सजा पर रोक लगा देता है। भारत सरकर राहत की साँस लेती है और उनके परिवारजनों को उस शख्स से मिलवाने की कूटनीतिक जुगत लगाती है। यह मेहनत रंग लाती है और भारी इंटरनेशनल दबाव में पाकिस्तान, उस शख्स को उसकी माँ और पत्नी से मिलवाने के लिए राजी हो जाता है। पत्नी और माँ की सघन जांच होती है, महज सादे कपड़ों में उस शख्स से मीटिंग करवाई जाती है, बात आमने-सामने पर फोन से होती है, जिसे अधिकारी सुन रहे होते हैं और उनके बीच में एक मोटी पर पारदर्शी दीव

दौलत, शोहरत या मेहनत, क्या है लाइफ की कुंजी ?

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इस life में सबसे खूबसूरत और सबसे डरावना एक ही न बदलने वाला सच है और वह है: uncertainity ! हमें नहीं पता होता कि अगले ही moment पर क्या होने वाला है। कुछ भी हो सकता है सो उसकी तैयारी हम करते हैं। education लेते हैं, job ढूंढते हैं और अपने से बड़ों से अक्सर words of wisdom लेते हैं। पर जिंदगी कभी पूरी खुलती नहीं और past अगर repeat भी करता है तो इतने creative ढंग से repeat करता है कि उसे present में face करते वक्त words of wisdom अक्सर काम ही नहीं आते या बस थोड़ी सी मदद कर पाते हैं। हमें क्या चाहिए life से हम तो यहीं confuse रहते हैं, क्योंकि हम देखते हैं कि जिन्हें हम अपनी life में admire करते हैं वे अलग-अलग लोग हैं और अलग-अलग चीजों ने उनके life में click किया है।1938 में Harvard ने एक बड़ा research project लिया, जिसे Adult Development Program  नाम दिया गया। दो groups के कुल 744 लोगों पर यह study की गयी। पहला group, Harvard से pass outs लोगों से बना और दूसरा Boston के poor suburbs के लोगों से बना। ऐसे research सचमुच survive नहीं करते पर luckily यह research आज भी चल रहा है और उन 744 में स

विश्व पटल पर उभरता भारत

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डॉ . श्रीश पाठक * भारत के मित्र समझे जाने वाले खूबसूरत देश मालदीव से अभी चीन ने मुक्त व्यापार संधि संपन्न की , पर फिर भी कहना होगा कि वैश्विक पटल पर और खासकर एशियाई क्षेत्र में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है। दरअसल , चीन के बढ़ते प्रभावों के उत्तर में अमेरिका के पास भारत के अलावा कोई दूसरा ऐसा विकल्प नहीं है , जिसकी भू - राजनीतिक स्थिति कमाल की हो , बाजार के लिए अवसर प्रचुर हों और वैश्विक लोकतान्त्रिक साख भी विश्वसनीय हो। अपने कार्यकाल के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा कार्यनीति में ट्रम्प सरकार ने जहाँ पाकिस्तान के लिए सख्त रवैया अपनाया वहीं एक ‘विश्वशक्ति’ के तौर पर भारत का ज़िक्र आठ बार किया और भारत के साथ सामरिक - आर्थिक हितों के और बेहतर विकास की वकालत की । हाल ही में हुए आठवें वैश्विक उद्यमिता शीर्ष सम्मलेन के आयोजन के लिए भी अमेरिका के स्टेट विभाग ने भारत को चुना , जो कि दक्षिण एशिया का पहला ऐसा आयोजन था। ट्रम्प की पुत्री इवांका , ट्रम्प परिवार की एक प्रभावशाली व्यक्तित्व मानी जाती हैं और अपने यहूदी पति जेरेड कुशनर की तरह ही जिनकी मंत्रणा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के

यूरोप ने आज के अपने स्वैग के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है, खून से अपने बर्फ बार बार रंगें हैं...!

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एशिया के बाद दो भाग में देखें विश्व राजनीति में यूरोप ! 1. यूरोप ने आज के अपने स्वैग के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है , खून से अपने बर्फ बार बार रंगें हैं ...! चौबीस घंटे की एक क्लॉक से अगर अपनी पृथ्वी की अभी तक की जिंदगानी को दिखाने की कोशिश हो तो हम इंसानों  की औकात महज इतनी है कि 00:00 से शुरू हुई घड़ी में हम तकरीबन 11:58 पर अवतरित हुए। पर लगता यों है कि हिस्ट्री हमीं से है , इस जहान की । उसमें भी पिछले दो - तीन सौ साल से यूरोप का चैप्टर चल रहा और लगता यही है कि जैसे दुनिया का सारा ‘फर्स्ट’ यहीं से बिलोंग करता है। सत्ता जिसकी होती है , उसी का रहन - सहन होता है , उसी का भौकाल होता है , उसी की भाषा होती है और उसी की परिभाषा होती है। सुबूत ये है हुजूर कि , इवेन इस आर्टिकल में भी अगर अंगरेजी के वर्ड्स निकाल प्योर हिंदी के डाल दें , तो इसे बोझिल लगना चाहिए । इतिहास का पिता हेरोडोटस को मानना होता है जो यूरोप के एक देश ग्रीस का निवासी था। हम पढ़ते हैं कि अमेरिका की खोज कन्फ्यूज्ड क्रिस्टोफर कोलम्बस ने की जो इंडिया ढूंढते - ढूंढते कैरिबियाई द्वीपों से जा टकराया। अमेरिका पहले भी वहीं था , पर य