महापुरुषों का आराध्य देश होता है और मूर्खों का आराध्य दल

डॉ. श्रीश महापुरुषों का आराध्य देश होता है और मूर्खों का आराध्य दल . मैं मुगलसराय अभी तक नहीं जा सका हूं . मेरे ज़ेहन में यह दो तरह से ही आता है बचपन से. कुछ दोस्त वहां के हैं और दूसरा दीनदयाल उपाध्याय जी का शव इसी स्टेशन पर बोरे में लिपटा पड़ा मिला था . मैं सचमुच नहीं समझता कि महामानव ऐसी मृत्यु के लिए अभिशप्त क्यों हैं? हमारा साझा सच सचमुच कितना विद्रूप है . एकात्म मानववाद के प्रणेता दीनदयाल उपाध्याय जी, जिनका समग्र जीवन सेवा धर्म का रहा, उनके नाम पर मुगलसराय स्टेशन का नाम रखना सचमुच एक सराहनीय कदम है . साधो, शहर वही है, उसका नाम अभी भी वही बस, स्टेशन का नाम बदला है . आइये इस पूरे घटनाक्रम को एक दुसरे पर्सपेक्टिव से देखें ! सत्ता और विपक्ष दो अलग वैचारिक दृष्टिकोण रखते हैं, उन्हें रखना भी चाहिए अन्यथा लोकतंत्र की सबसे बड़ी सुविधा ‘चयन ‘ खतरे में आयेगी . सिविल सोसायटी के लोग कतिपय लोभों के चलते अपनी सशक्त भूमिका नहीं निभा रहे . परिणामतः मीडिया अजीब तरीके से लेवियाथन बनने की स्थिति में है . विपक्ष और सत्ताधारी अपनी सुविधा से एजेंडा चुनते हैं मीडिया का अधिकांश हिस्सा अपनी बारगेनिंग के हिसा