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यूँ ही नहीं पनपती संविधानवाद की परंपराएँ

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डॉ . श्रीश पाठक* न्यूजकैप्चर्ड   आज   आ धुनिक समय में लोकतंत्र महज एक राजनीतिक व्यवस्था से कहीं अधिक एक राजनीतिक मूल्य बन चुका है जिसे इस विश्वव्यवस्था का प्रत्येक राष्ट्र अपने संविधान की विशेषता बताना चाहता है, भले ही वहाँ लोकतांत्रिक लोकाचारों का नितांत अभाव हो. संविधान किसी देश के शासन-प्रशासन के   मूलभूत सिद्धांतों और संरचनाओं का दस्तावेज होते हैं, जिनसे उस देश की राजनीतिक व्यवस्था संचालित-निर्देशित होती है. जरूरी नहीं कि कोई लिखित प्रारूप हो, कई बार उस देश की दैनंदिन जीवन की सहज परंपरा और अभिसमय ही इतने पर्याप्त होते हैं कि उनसे उस देश की राजनीतिक व्यवस्था पुष्पित पल्लवित रहती है, जैसे ब्रिटेन. संविधान की भौतिक उपस्थिति से अधिक निर्णायक है किसी राष्ट्र में संविधानवाद की उपस्थिति. यदि किसी देश में संचालित राजनीतिक संस्थाएँ अपनी अपनी मर्यादाएँ समझते हुए कार्यरत हों तो समझा जाएगा कि संविधान की भौतिक अनुपस्थिति में भी निश्चित ही वहाँ एक सशक्त संविधानवाद है. पाकिस्तान जैसे देशों में संविधान की भौतिक उपस्थिति तो है किन्तु संविधानवाद की अनुपस्थिति है.    संविधानवाद की परंपराएँ पनपने में

भारतीय राष्ट्रवाद की विशिष्टता

डॉ . श्रीश पाठक पंजाब केसरी   दो - दो विश्वयुद्धों की विभीषिका के काफी पहले सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप ने लगातार चलने वाले तीस वर्ष के युद्ध से जूझता रहा।  जर्मनी के वेस्टफेलिया क्षेत्र में आखिरकार एक शांति - संधि की गयी , जिसमें सभी पक्षों ने एक दूसरे की सीमाओं का आदर करने और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का संकल्प लिया। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की विश्व राजनीति इस क्षण से हमेशा के लिए बदल गयी। किसी राष्ट्र - राज्य के संप्रभु होने की अवधारणा का भी विकास हुआ और साथ ही ज्यों ज्यों यूरोप में साम्राज्यवाद के फलस्वरूप सम्पन्नता आती गयी अपने ही क्षेत्रीय - सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय पहचान में तब्दील कर उसे महानता का स्तर देकर राष्ट्रवाद की संकल्पना उपजती गयी। इस उत्कट राष्ट्रवाद ने यूरोप को प्रगति तो दी पर आगे चलकर विश्वयुद्धों का अविस्मरणीय दंश भी दिया।  उपनिवेशवाद के जवाब के फलस्वरूप उत्तर - औपनिवेशिक प्रयासों के तहत भारत जैसे राष्ट्रों ने भी राष्ट्रवाद की संकल्पना को अपनाकर सम्पूर्ण देश की विविधता के विखंडन को रोकने की कोशिश की। स्पेन के कैटेलोनिया सहित यूरोप में दो दर्जन से अधिक छ