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Showing posts from December 5, 2017

अटकी शिक्षा और ब्रितानी अतीत

डॉ. श्रीश पाठक* यू सी न्यूज आधुनिक समय में पदार्थ ने विचार/दर्शन पर विजय पा ली है और उपनिवेशवाद के अनुभव ने हमारा आत्मबोध खोखला किया है जिसे भरने की कोशिश विवेकानंद से लेकर गाँधी तक ने की थी. एक भारतीय के तौर पर अब हम स्वयं को विशिष्ट अस्मिता का मानने तो लगे हैं इस विशिष्टता की कसौटी अब भी हम पश्चिम से उधार ले रहे. हम ऐसा कर रहे क्योंकि आधुनिक समय में समानांतर, हमने अपनी कसौटियाँ जिन्हें हमारी थातियों से उभरना चाहिए था,हमने उन्हें विकसित नहीं किया. इस दिशा में प्रगति धीरे-धीरे ही होती है और इस राह में और दूसरी समस्याएं भी आती हैं. परिवर्तन कोई एक दिन का फूल नहीं. पश्चिम का पैमाना लेकर हम अलग थलग हो अपने देसी जमीन पर उपजने वाले एक-दुसरे का अनुभव नकारे जा रहे हैं, जिससे युवाओं में एक हीनताबोध उपजता है और वे लालायित हो पश्चिम की तरफ देखते हैं. आज का भारत जिसे हम दैट इज इंडिया कहते हैं यह १९४७ में आया, १९५० में संप्रभु हुआ, इसकी जड़ें हड़प्पा के भी पीछे की हैं और इसमें जो संविधान आया उसके बनाने वालों में हिन्दू महासभा, मुस्लिम लींग, कांग्रेस, लेफ्ट, एंग्लो-इंडियन, राजपूत, दलित, मराठी, पंजाबी

पुतिनपरस्त रूस और एशियाई राजनीति

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डॉ. श्रीश पाठक* सुबह सवेरे आज का रूस एक लोकतान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्था वाला देश है। अतीत में, समाजवादी छवि के साथ रूस का सोवियत संघ के रूप में पदार्पण विश्व राजनीति में हुआ और अमेरिका के सापेक्ष द्वितीय ध्रुव बन उसने शीत युद्ध की ज़मीन तैयार की। विश्व-राजनीति में दो ही निर्णायक शक्तियाँ रहीं किन्तु सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् रूस फिर एक राष्ट्र में सीमित हो गया। रूस ने धीरे-धीरे स्वयं को सहेजा। विघटन के पश्चात् भी रूस दुनिया का सबसे बड़ा देश है किन्तु पश्चिमी विकसित देशों के साथ कदमताल करने के लिए इसे एक पुनर्निर्माण से गुजरना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटोयुक्त शक्ति ने और भू-राजनीतिक दृष्टि से यूरोप और एशिया दोनों ही ही का भाग होने के कारण रूस कभी विश्व-राजनीति में अप्रासंगिक तो नहीं रहा, किन्तु इसके प्रभाव में असर जरूर आया। रूस ने कमोबेश पश्चिमी शक्तियों के साथ मिलकर पुनः अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया। रूस की राजनीति में पुतिन का प्रादुर्भाव एक दूरगामी प्रभाव लेकर आया है । कभी राष्ट्रपति तो कभी प्रधानमंत्री बन पुतिन पिछले सत्रह सालों से रूस में सर्वाधिक निर्णायक स्थिति में है