अटकी शिक्षा और ब्रितानी अतीत
डॉ. श्रीश पाठक* यू सी न्यूज आधुनिक समय में पदार्थ ने विचार/दर्शन पर विजय पा ली है और उपनिवेशवाद के अनुभव ने हमारा आत्मबोध खोखला किया है जिसे भरने की कोशिश विवेकानंद से लेकर गाँधी तक ने की थी. एक भारतीय के तौर पर अब हम स्वयं को विशिष्ट अस्मिता का मानने तो लगे हैं इस विशिष्टता की कसौटी अब भी हम पश्चिम से उधार ले रहे. हम ऐसा कर रहे क्योंकि आधुनिक समय में समानांतर, हमने अपनी कसौटियाँ जिन्हें हमारी थातियों से उभरना चाहिए था,हमने उन्हें विकसित नहीं किया. इस दिशा में प्रगति धीरे-धीरे ही होती है और इस राह में और दूसरी समस्याएं भी आती हैं. परिवर्तन कोई एक दिन का फूल नहीं. पश्चिम का पैमाना लेकर हम अलग थलग हो अपने देसी जमीन पर उपजने वाले एक-दुसरे का अनुभव नकारे जा रहे हैं, जिससे युवाओं में एक हीनताबोध उपजता है और वे लालायित हो पश्चिम की तरफ देखते हैं. आज का भारत जिसे हम दैट इज इंडिया कहते हैं यह १९४७ में आया, १९५० में संप्रभु हुआ, इसकी जड़ें हड़प्पा के भी पीछे की हैं और इसमें जो संविधान आया उसके बनाने वालों में हिन्दू महासभा, मुस्लिम लींग, कांग्रेस, लेफ्ट, एंग्लो-इंडियन, राजपूत, दलित, मराठी, पंजाबी