नेपाली लोकतंत्र का प्रभात

डॉ. श्रीश पाठक नेपाल की सांस्कृतिक-भौगोलिक वैविध्यता में पलने वाले उसके निवासियों को तीन मुख्य विभाजन में समझा जाता है; हिमाल, पहाड़ और तराई। तिब्बत से सटे ऊँचाई पर बसे हिमाल कहलाते है, पहाड़ के लोग मध्य नेपाल के निवासी हैं और भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार से जुड़े सीमाई लोग मधेशी अस्मिता वाले तराई के कहलाते हैं। यह विभाजन इतना सरल नहीं है पर नेपाली राजनीति में इनकी जटिलतायें महत्वपूर्ण हैं और इसलिए ही नेपाल की संविधान निर्माण की यात्रा इतनी दुरूह रही है। यह समय, नेपाल के लिए लोकतान्त्रिक सूर्योदय का है। एक साथ नयी सरकार केंद्र में भी आएगी और राज्यों में भी। एशिया के दो शक्तिशाली पड़ोसी देश भारत और चीन ध्यानपूर्वक नेपाल की राजनीतिक प्रगति को निहार रहे हैं क्योंकि सितम्बर 2015 के नए संविधान के मुताबिक वह सरकार लोकतान्त्रिक सरकार होगी, जो एक स्वतंत्र गणराज्य का नेतृत्व करेगी और सम्भावना अधिक इसी की है कि आगामी सरकार वामपंथी गठबंधन की होगी और अपना पाँच साल का कार्यकाल पूर्ण करेगी। आश्चर्यजनक रूप से इतनी मतभिन्नता एवं संघर्षों के इतिहास के बावजूद छोटे-बड़े कई दलों के देश नेपाल में दो बड़े गठबंधन उ