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पोलिटिकल पाठशाला: आइडियोलॉजी

* यह कोई अकादमिक आलेख नहीं है ! # जेनरेशन नेक्स्ट के लिए जिससे जान नहीं छुड़ा सकते , उसे जान लेने में ही भलाई है। अपने देश में पॉलिटिक्स स्टडी की चीज मानी नहीं जाती , बस चतुर करते हैं और बकिया मौज लेते हैं। लाइफ रिपीट नहीं करती खुद को पर इसके चैलेंजेस से निपटने की प्रिपरेशन हो तो इजी हो जाता है और कई बार बेहतरी की गारंटी भी मिल जाती है। इन्हीं तैयारियों को पढ़ाई कहते हैं। ज़िंदगी का एक - एक रेशा वेस्ट न हो , इसलिए होश सम्हालते ही कोशिश होती है कि स्कूल शुरू करवा दिया जाए। पढ़ाई को बैगेज बना दिया गया है और इसे केवल ब्रेड - बटर से जोड़ दिया गया है तो अब यह रियलिटी से दूर होती जा रही और अक्सर लोग इसे बुकिश कह कट लेते हैं। उनका दोष नहीं है। पढ़ाने वाले भी और पढ़ने वाले भी उसी सोशल प्रेशर में हैं , जिसमें बस जल्द से जल्द बंगला , गाड़ी , झुमके , कंगना और शोहरत हासिल कर लेना होता है। मेरा अपना मानना है कि अगर पढ़ी हुई चीज जीवन में दिखाई न पड़ने लगे , उसे हम रियलिटी से रिलेट न कर पा रहे हों और वह स्टडी रोजमर्रा के प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने में हेल्प न करती हो , तो वह टीचिंग भी बेकार और वह स्टडी भी बेकार