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भारत राष्ट्र की विविधता और चुनाव सुधार

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भारत राष्ट्र की विविधता और चुनाव सुधार डॉ. श्रीश पाठक*  स्वतंत्र व निष्पक्ष और नियमित अंतराल पर होने वाले चुनाव किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के आवश्यक लक्षण हैं। चुनाव यदि स्वच्छ और निष्पक्ष न हों, तो राजनीतिक व्यवस्था के लिए ही घातक सिद्ध हो जाते हैं। राजनीतिक सरंचनाएं निर्बाध चलती तो रहती हैं किन्तु उनका अभिप्राय शेष नहीं रह जाता। दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र भारत में चुनाव वर्षपर्यन्त चलने वाले उत्सव हैं, जो न केवल बेहद खर्चीले हैं बल्कि इससे सामान्य प्रशासन के संचलन में भी बाधा पड़ती है। इसी वर्ष अप्रैल में नीति आयोग ने एक मसविदा तैयार करके सभी मुख्यमंत्रियों एवं दूसरे संबंधित लोगों को प्रेषित किया है जिसमें २०२४ से केंद्र-राज्य चुनाव एक साथ ही कराने की वकालत की गयी है, जिससे सुशासन की राह में आने वाली चुनाव-प्रचार संबंधित ख़लल न्यूनतम किये जा सके। पड़ोसी देश नेपाल ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए राज्य और केंद्र के चुनाव एक साथ ही दो चरणों में कराने का निर्णय लिया और सफलतापूर्वक संपन्न भी कर लिया है। इस केंद्र-राज्य समकालिक चुनाव व्यवस्था से संसाधनों का मितव्ययी प्रयोग तो होगा ही, आशा की ज