कुलभूषण जाधव, अजमल कसाब नहीं हैं...

कभी भारतीय नेवी में काम कर चुका एक शख्स जो अपनी अधेड़ उम्र में ईरान जाकर कारोबार कर रहा था कि सहसा उसका अपहरण हो जाता है। पाकिस्तानी मीडिया हल्ला मचाती है कि उसने भारत के जासूस को पकड़ा है वह भी अपने प्रान्त बलूचिस्तान से। कहा जाता है कि वह रॉ का एक जासूस है, जो बलूचिस्तान में हुए कई बम विस्फोटों का जिम्मेदार है। पाकिस्तानी मार्शल कोर्ट उसे गुनहगार मानती है और फांसी की सजा सुनाती है। भारत सरकार हरकत में आती है और सजा के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस, हेग में अपील करती है। पंद्रह सदस्यीय जजों का पैनल (जिसमें भारत के जस्टिस दलवीर भंडारी भी हैं ) उस शख्स की सजा पर रोक लगा देता है। भारत सरकर राहत की साँस लेती है और उनके परिवारजनों को उस शख्स से मिलवाने की कूटनीतिक जुगत लगाती है। यह मेहनत रंग लाती है और भारी इंटरनेशनल दबाव में पाकिस्तान, उस शख्स को उसकी माँ और पत्नी से मिलवाने के लिए राजी हो जाता है। पत्नी और माँ की सघन जांच होती है, महज सादे कपड़ों में उस शख्स से मीटिंग करवाई जाती है, बात आमने-सामने पर फोन से होती है, जिसे अधिकारी सुन रहे होते हैं और उनके बीच में एक मोटी पर पारदर्शी दीव