इसकी एकमात्र दवाई बेशर्मी है !

साभार: गंभीर समाचार एक ज़माने तक 'मैन इज मेजरमेंट ऑफ़ एवरीथिंग' का जुमला काफी चला। विज्ञान के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ वह सभी कुछ तार्किक और उपयोगी समझा गया जो महज मनुष्य के काम आये। इस एकांगी दृष्टिकोण ने पशु, पादप, जलज और अंततः मनुष्य को बेहद करारी चोट पहुंचाई क्योंकि मनुष्य के अहम् को यह संज्ञान बहुत बाद में हुआ कि पर्यावरण के सभी घटक महत्वपूर्ण हैं और उनमें अंतरनिर्भरता है। वह एकांगी दृष्टिकोण तब तक सामाजिकता के सभी संस्तरों तक जा पहुँचा और फिर मानव, मानवीयता के सन्दर्भ टटोलने में ही हांफने लगा। व्यक्तिवादिता और स्वार्थ के कोष्ठकों में बंद व्यक्ति के लिए, अब 'बेनिफिट इज एवरीथिंग' ही परम लक्ष्य बन गया है। व्यक्ति जितना, समाज से इतर व्यक्तिवादिता को महत्त्व देगा उतना ही अंतरनिर्भरता (इंटरडेपेंडेन्स) से भागेगा। अपने प्राकृतिक सामाजिक स्वभाव को नकारते हुए व्यक्ति ‘निजी स्पेस’ तलाशेगा और बाजार इस विसंगति का शोषण कर ऐसी आपूर्ति करेगा कि व्यक्ति में ‘इंडिपेंडेंट’होने का छद्म भाव उपजेगा। ऐसा निर्मम बाजार अपने लिए केवल 'प्रॉफिट इज एवरीथिंग' का टैग टाँकेगा। सामाजिकता-स