2017: भारतीय कूटनीति का लेखा-जोखा

पिछला साल महज उपलब्धियों वाला नहीं रहा है, अपितु भारतीय कूटनीति के लिए कई सबक देकर यह वर्ष विदा हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के अभिकरण इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में भारतीय जज दलवीर भंडारी की पुनर्नियुक्ति भारत की जबरदस्त कूटनीतिक विजय मानी गयी पर उसी संयुक्त राष्ट्र का लोकतंत्रीकरण करने के लिए सरंचनात्मक सुधार करते हुए सुरक्षा परिषद् में भारत की वीटोसहित सदस्यता के भारतीय प्रयासों में ठंडक बनी रही। यदा-कदा आते-जाते कई देशों के भारतीय अतिथि इस मुद्दे पर भारतीय पक्ष लेते रहे पर कुछ भी ठोस प्रगति नहीं हुई। भारत से अपने संबंधों में एक उन्नत स्तर की समझ की दुहाई देने वाला अमेरिका भी अपने रवैये में ढुलमुल ही रहा। पड़ोसी चीन ने तो कभी भी इस मुद्दे पर भारत का समर्थन नहीं ही किया अपितु वह कहता रहा कि सुधारों का यह उपयुक्त समय ही नहीं है। भारत समझ सकता है कि भारत के हित उसके विश्व सहयोगियों को भी वहीं तक स्वीकार्य होंगे जहाँ तक उनके हित को कोई असुरक्षा न हो। चीन ने न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भी भारत की सदस्यता का पुरजोर विरोध किया। एनएसजी, परमाणु आपूर्ति राष्ट्रों का एक समूह है जो परमाणु