संघर्ष के एक मुहाने पर फिर श्रीलंका

साभार: गंभीर समाचार जबसे हिंद महासागर की अंगड़ाई लेती लहरें चीन की नज़रों में चढ़ी है, क्षेत्र के द्वीपीय देशों को जैसे उसकी नज़र ही लग गयी है। मालदीव की सरकार के द्वारा देश में आपातकाल की सीमा बढ़ाये जाने के एक पखवाड़े बाद ही श्रीलंका के कुछ ऐसे हालात हो गए कि सरकार को आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी। वैसे यह दोनों आपातकाल किसी भी रीति से आपस में संबद्ध नहीं हैं; यह ज़रुर है कि दोनों देशों का औपनिवेशिक अतीत ही है जिससे वर्तमान में भी शांति और विकास आकाश कुसुम बने हुए हैं l मालदीव का आपातकाल सत्तालोलुपता में जहाँ लोकतंत्र के खिलाफ है वहीं श्रीलंका का आपातकाल सत्तासीन सरकार द्वारा सांप्रदायिक शक्तियों के मंसूबों के खिलाफ लिया गया एक सख्त कदम है जो देश के लोकतंत्र को मजबूती देगा l भारत के नज़रिये से देखें तो दोनों ही देशों के आंतरिक मामलों में अलग-अलग समयों में भारत द्वारा हस्तक्षेप किया गया है l दोनों ही अवसरों पर भारत को आमंत्रित किया गया l श्रीलंका में 1987 में भारत उलझ गया था वहीं 1988 में मालदीव में शांति स्थापित करने में सफल रहा था l भारत अपनी ऐतिहासिक वैश्विक एवं क्षेत्रीय भूमिका को देखते ह