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बस डोलता बस बोलता बिस्मार्क

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मोदी सरकार के चार वर्ष: विदेश नीति समीक्षा साभार: गंभीर समाचार  "लोग उतना झूठ कभी नहीं बोलते जितना कि शिकार के बाद, युद्ध के दरम्यान और चुनाव के पहले बोलते हैं। " - ऑटो वॉन बिस्मार्क अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के विदेश नीति का आधार, झुकाव और कार्यशैली कमोबेश एक-सी रही। उसमें ‘परिवर्तन और सततता’ का गुण विद्यमान था। अवसर अनुकूल जोखिम लिए गए और मूलभूत मुद्दों पर दृढ़ता बनी रही। दोनों सरकारों ने अपने क्षेत्र के पड़ोसियों से संबंध बनाये रखने का महत्त्व समझा था और विश्व-राजनीति में एक स्पष्ट रुख रखते हुए जहाँ-तहाँ संबंधों को बनाने की दिशा में प्रयासरत रहे। विश्व-राजनीति का एकल ध्रुव अमेरिका बना हुआ था और उसके सबप्राइम क्राइसिस से दुनिया उबरी ही थी। भारत के संबंध अमेरिका से क्रमशः प्रगाढ़ हो रहे थे और रूस से संबंध सततता में थे। पर्यावरण, खाद्य-सुरक्षा और संयुक्त राष्ट्र सुधार जैसे मुद्दों पर भारतीय रुख स्पष्ट था और लोकतांत्रिक समानता पर आधारित था। भारत के पड़ोस में परेशानियाँ थीं फिर भी दक्षेस की बैठकें जारी थीं। भारत में जब मई, 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बहुमत से चुनी गयी थ