फिर वही दिल लाया हूँ...!

गंभीर समाचार निस्संदेह, भारतीय विदेश नीति के इतिहास में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अध्याय रुचिकर रहेगा। नरेंद्र मोदी की विदेश नीति में व्यक्तिगत रूचि है और विश्व नेताओं से एक व्यक्तिगत रिश्ता बनाने में यकीन रखते हैं। लेकिन विदेश यात्राओं के मामले में उनका रिकॉर्ड यदि बेहद उल्लेखनीय है तो इसका एक कारण मौजूदा वैश्विक परिघटनाओं का बेहद अनिश्चित होना भी है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक सुपरपॉवर राष्ट्र जहाँ अपने लिए ध्रुवीकृत और स्पष्ट समर्थन चाहता है वहीं एक वर्ल्डपॉवर राष्ट्र सभी अन्य राष्ट्रों से संतुलित संबंध की आकांक्षा रखता है। अमेरिका का अपने सहयोगियों से निर्बाध समर्थन की अपेक्षा रखना ठीक वैसे ही उचित है जैसे भारत जैसे देशों का लगभग सभी महत्वपूर्ण राष्ट्रों से संबंधों की अपेक्षा रखना उचित है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के आर्थिक परिप्रेक्ष्य ने जहाँ सर्वोच्च शक्ति अमेरिका को यह सहिष्णुता दी है कि विश्व के राष्ट्र संबंधों के मनचाहे आयामों यथा- द्विपक्षीय, बहुपक्षीय आदि में अपने अंतरराष्ट्रीय संबंध बना सकते हैं वहीं भारत जैसे देश वैश्वीकरण से उपजी अपनी नयी शक्ति व स्वीकार्यता को ‘स्वतंत