भारतीय विदेश नीति के बढ़ते आयाम

साभार: दैनिक जागरण किसी भी चुनी हुई सरकार के लिए विदेश नीति सर्वाधिक कठिन आयाम होती है। अनिश्चितता इसका निश्चित गुणधर्म है इसलिए इसमें सफलता और असफलता दूरगामी परिणाम तथा महत्त्व लेकर आती है। अपेक्षाकृत रूप से नरेंद्र मोदी सरकार को विश्व-राजनीति का एक कठिन समय नसीब हुआ है। पिछले दो दशकों में ऐसा नहीं था कि समस्याएं जटिल नहीं थीं लेकिन एक सर्वोच्च विश्व शक्ति के रूप में अमेरिका की स्थिति सर्वमान्य थी। रूस, दक्षिण कोरिया, जापान, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, ब्रिटेन आदि सहित यूरोप के राष्ट्र अमेरिका की पंक्ति में ही स्वयं को अनुकूल कर विकास के पायदान पर चढ़ने के हिमायती बने रहे। संयुक्त राष्ट्र सहित विश्व की दूसरे बड़े आर्थिक व सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन कमोबेश अमेरिकी वित्त पर ही आधारित होते हुए कार्यरत रहे। स्थितियाँ एकदम से बदल नहीं गयी हैं, लेकिन पुतिन का रूस अब महत्वाकांक्षी राष्ट्र है, शी जिनपिंग का चीन ओबोर नीति से अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षा स्पष्ट रख रहा है, जापान अपनी शांतिपूर्ण विदेश नीति का मंतव्य छोड़कर सक्रिय विदेश नीति की ओर रुख कर चुका है। रूस, चीन, पाकिस्तान मिलकर एशिया में साझी रण