‘दौर-ए-दिखाऊ देशभक्ति’, देशप्रेमी या भ्रष्ट

साभार: दिल्ली की सेल्फी आजकल कुछ को देशद्रोही बताने के लिए स्वतः ही स्वयं को परम देशभक्त घोषित करने की परम्परा चली है। लोग उस छोटे भाई की तरह तात्कालिक लोभ में मझले भाई के विरोध पर उतर आये हैं जिसने अपने बड़े भाई के किसी गलत फैसले का महज विरोध कर दिया है। ‘देशभक्ति’ को ‘राष्ट्रवादी’ होना बताया जा रहा और इस साबुन से सारे कुकृत्य धुलकर लंबा गाढ़ा चन्दन लगाकर लोग भारत माता का जयकारा लगाकर सीना ताने ‘भारतीयता’ को ताक पर रख रहे। नारों, जुमलों, पोस्टरों, प्रोफाइल पिक्स और डीपी आदि की ‘दिखाऊ देशभक्ति’ को छोड़ दें तो किसकी रोजमर्रा की ज़िंदगी में ‘देश’ होता है? दिनभर के अपने फैसलों में कब ‘देश’ कसौटी बनता है कि कौन सोचता है कि मेरे किसी कदम से ‘देश’ को क्या नुकसान होगा या फायदा होगा! भ्रष्ट व्यक्तियों का तंत्र भ्रष्ट होता है। राज्य, कर वसूलती है और अपने नागरिकों की जरूरतों का पालन करती है। लेकिन नौकरीपेशा टैक्स बचाने के लिए सीए और वकील को जुगाड़ लगाने को कहता है। उद्योगपति, राजनीतिक दलों को चंदा दे उनसे अपने लिए छिपे-छिपे सहूलियतें बटोरते हैं और टैक्स से छूट जाते हैं, सो अलग। कितने तो कर देते ही न