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आर्मी अरमानों के कप्तान इमरान

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साभार: गंभीर समाचार  पहचान की औपनिवेशिक जिद की बुनियाद पर बने पाकिस्तान का इतिहास इतना उलटफेर वाला है कि एक राष्ट्र के तौर पर इसकी इमारत को कभी मुकम्मल छत नसीब ही नहीं हुई। भारत को जहाँ 1950 में ही एक दुरुस्त संविधान मिला, वहीं पाकिस्तानी अवाम को उनका आईन आजादी के 26 साल बाद नसीब हुआ। इन बीते छब्बीस सालों में एक सशक्त राजनीतिक व्यवस्था और कुशल नेतृत्व के दारुण अभाव ने पाकिस्तान के ‘राजनीतिक विकास’ को गहरी चोट पहुंचाई और यहाँ लोकतंत्र आकाशकुसुम सा बन गया। जैसा कि औपनिवेशिक अतीत के नवस्वतंत्र राष्ट्रों में होता है कि बहुधा वहाँ ईमानदार, कुशल, लोकतांत्रिक नेतृत्व के अभाव में ‘सहज राजनीतिक विकास की प्रक्रिया’ अवरुद्ध हो जाती है और लोकतंत्र के पनपने की जमीन पर अनायास अनचाही तानाशाही की घास उग आती है, दक्षिण एशियाई परिदृश्य में पाकिस्तान इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ।  अदृश्य हाथ वाला इस्टैब्लिशमेंट और उसका डीप स्टेट   पाकिस्तान में इस अनचाही तानाशाही घास की खेती कभी प्रकट तो कभी अप्रकट रहकर सेना करती है। लोकतंत्र के सामान्य लक्षणों में से एक महत्वपूर्ण लक्षण है, नियमित अंतराल पर स्वच्छ व निष्पक्