क्या हम निष्पक्ष मीडिया के लिए तैयार हैं?

साभार: दिल्ली की सेल्फी निष्पक्ष न्यूज-व्यूज पढ़ने-देखने के लिए हमें अपनी जेब से पैसे खर्च करने को धीरे-धीरे मन बनाना होगा। प्रायोजित न्यूज संस्कृति में सबसे बड़ा प्रायोजक सरकारी विज्ञापन के बहाने सरकार ही बन जाती है। प्रायोजित न्यूज संस्कृति में हम मीडिया और सरकार से इस सकारात्मक उम्मीद में होते हैं कि ये दोनों खुद राजनीतिक नैतिकता का अनुपालन करेंगे। यह अजीब स्थिति है। घर में बैठे-बैठे हम ये उम्मीद करते हैं कि मीडिया अपना काम करे और आपको न्यूज पहुँचाए और उसी भोलेपन से हम सोचते हैं कि सरकार चुन ली गई है और अब वह अपना काम करे! मीडिया लोकतंत्र का चौथा खंभा इसलिए है क्यूँकि वह सार्वजानिक पक्ष पर प्रश्न कर सकता है। प्रश्न करने के पीछे एक तैयारी करनी होती है। इस तैयारी में जीते-जागते, पढ़े-लिखे लोग होते हैं, जिनके दिन का 18-20 घंटा लगता है, उन्हें भी उसी रेट पर बाजार सामान देता है, उन्हें भी अपना परिवार चलाना है, यह तैयारी ही उनका रोजगार है। ग्लोबलाईजेशन और तगड़े बाजारवाद के दौर में एक पत्रिका, एक अखबार और एक चैनल चलाना बेहद ही चुनौती भरा काम है। एकबार पैसा लगाने के बाद अपना संस्थान बचाना