Posts

Showing posts from 2019

Quoted: Aaj Tak (On CAA Referendum in UN)

Image
आज तक  " कितना उचित है ममता की रेफरेंडम की मांग बहरहाल, जनमत संग्रह (रेफरेंडम) यानी रायशुमारी. मतलब लोगों की राय लेना. हाल ही में देखा गया था कि इंग्लैंड ने यूरोपीय संघ से अलग होने (ब्रेक्जिट) के लिए लोगों की रायशुमारी की थी. लोग अपनी सहमति या असहमति व्यक्त करके राय व्यक्त करते हैं. ममता बनर्जी भी नागरिकता के मुद्दे पर ऐसी रायशुमारी की मांग कर रही हैं. सवाल है कि ममता बनर्जी का नागरिकता के मुद्दे पर भारत में जनमत संग्रह कराये जाने की मांग करना कितना उचित है. राजनीतिक विश्लेषक और एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा में अस्सिटेंट प्रोफेसर श्रीश पाठक इस मामले पर ममता बनर्जी की मांग से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. श्रीश पाठक कहते हैं, 'ममता बनर्जी उत्साह में असाधारण बात कह रही हैं. उनकी यह बात संप्रुभता के खिलाफ है. यह हमारा अंदरूनी मामला है. उन्हें एक मुख्यमंत्री के तौर पर कभी ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए.' इस सवाल पर कि क्या संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में रेफरेंडम हो सकता है? श्रीश पाठक कहते हैं कि यह मुमकिन हो सकता है, लेकिन सवाल है कि हम इस मु्द्दे को वहां ले ही क्यों जाएंगे. हमें इस मुद्दे का

PPT: India-Nepal Relations-Cooperation and Development

 

Quoted: Aaj Tak (On Trump)

Image
आज तक  " गलगोटिया यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख श्रीश पाठक पीएम मोदी की चुप्पी को कूटनीतिक और उचित मानते हैं. उन्होंने बताया कि अमेरिकी विदेश नीति का सर्वाधिक प्रमुख चेहरा वहां का राष्ट्रपति होता है. भारत-अमेरिका संबंधों की महत्ता देखते हुए ट्रंप के बयान की स्पष्ट आलोचना न संभव है और न ही आवश्यक है. फिलहाल एक कूटनीतिक चुप्पी के अधिक लाभ है. श्रीश पाठक ने कहा, 'ऐसा लगता है कि भारतीय विदेश विभाग ने कोई पहल जरूर की हो इस आशा से कि समाधान भारतीय पक्ष में अधिकाधिक संभव हो सके. लेकिन बात बनी न हो और ट्रंप ने अपनी भूमिका रेखांकित करने की गरज से एक बयान दिया हो ताकि ट्रंप के समर्थक इसे पसंद करें. गौरतलब है कि अगले वर्ष अमेरिका में चुनाव भी है. मोदी द्वारा किया गया कोई खंडन अंततः संबंधों में एक खटास ही लाएगा और भारत यह कत्तई नहीं चाहेगा.' श्रीश पाठक का कहना है कि यह भी संभव है कि एक दूरगामी समझ बन गई हो और ट्रंप ने जिसकी ओर एक इशारा कर दिया हो. यह फिलहाल समय के गर्भ में ही है कि चीजें कैसे सामने आती हैं. इतना जरूर कहा जा सकता है कि कश्मीर एक मुद्दे के तौर पर आने व

हम सही हैं और हमें भीड़ अपना निशाना नहीं बनाएगी ?

Image
Image Source: DNA India हम सही हैं और हमें भीड़ अपना निशाना नहीं बनाएगी।  यही सोचते हैं हम, कई यही सोच रहे थे जो निशाना बन गए। एक भीड़, दूसरे तरह की भीड़ को उकसाती है। दोनों उन्मादी , बस प्रतिशोध समझते हैं, व्यक्ति का प्रतिशोध समुदाय से लेना चाहते हैं। दोनों को भविष्य की कोई चिंता नहीं होती, वह तो किसी अतिशयोक्तिपूर्ण अतीत की गिरफ्त में होते हैं। भीड़तंत्र कभी हमसे हमारा पक्ष नहीं पूछेगा, वह आरोप लगाएगा और दंड देगा तुरंत। सही-गलत के न्याय के लिए हम, शेष नहीं होंगे। उन्माद आत्मघाती होता है, यह उन्मादी नहीं समझ पाता। लोकतंत्र की यात्रा बेहद ही दुरूह है। हमने खून बहाया है यहाँ तक आने के लिए। उल्टी यात्रा, खतरनाक है। असहमतियाँ अगर स्थान पाती हैं तो वे लोकतंत्र की सर्वाधिक स्थायी एवं आश्वस्तकारी छवि निर्मित करती हैं। पूरे विश्व भर में किसी राष्ट्र के लोकतंत्र की शक्ति को मापने की सबसे महत्वपूर्ण कसौटियों में से एक असहमतियों का होना है। किसी लोकतांत्रिक राष्ट्र में असहमतियों के साथ जैसा सुलूक किया जाता है, वैसा ही वह लोकतंत्र समझा जाता है। #Mob_Lynching #श्रीशउवाच

Quoted: Aaj Tak (On Maldives)

Image
  आज तक  " श्रीश पाठक कहते हैं कि मालदीव की मजलिस (संसद) में मोहम्मद नशीद को स्पीकर के रूप में भारतीय प्रधानमंत्री के साथ बैठे देखना अच्छा लगा. पिछले साल फरवरी में अब्दुल्ला यामीन की सरकार ने जब देश में आपातकाल लगाया था तो इन्हीं नशीद ने तब भारत सरकार को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की थी. श्रीश पाठक याद करते हैं कि स्वनिर्वसन में नशीद ने यह चिट्ठी श्रीलंका से लिखी थी. एक जमाने में पत्रकार रहे मोहम्मद नशीद मालदीव में उन संघर्षों के अगुवा रहे जिससे देश को 2008 में एक नया लोकतांत्रिक संविधान मिला और उसी साल ग्यूम को चुनाव में हराकर नशीद देश के पहले लोकतांत्रिक राष्ट्रपति चुने गए थे. उस वक्त भारत के लिए एक पशोपेश की स्थिति थी क्योंकि यामीन सरकार को चीन का पूरा समर्थन था और भारत को डोकलाम मुद्दे में चीन के साथ तनातनी से उबरे कुछ वक्त ही हुए थे. मालदीव में चीन ने एक चेतावनी भी दे ही दी थी कि आंतरिक मामले में कोई हस्तक्षेप न करे. उन्होंने कहा कि आखिरकार, देश की जनता ने नशीद और ग्यूम समर्थित नेता मोहम्मद सोलिह को आम चुनाव में विजयी बनाया. सोलिह की सरकार ने एकबार फिर मालदीव में भारत की पा

क्या नोटा बकवास है?

Image
डॉ. श्रीश पाठक मतदान अवश्य करें, चाहे भले ही नोटा क्यूँ न हो। मतदान न देना और नोटा में बहुत अंतर है। नोटा एक बेहद महत्वपूर्ण साधन है, यह प्रभावी है, सभी दलों ने जानबूझकर इसकी अवहेलना की है क्योंकि यह उनके डाइनिंग रूम के बनाए समीकरण तोड़ता है और अंततः उन्हें जनता के बीच में आने व रहने को मजबूर करता है।  राजनीतिक शिक्षा के अभाव में अक्सर लोग नोटा और मतदान ना देना एक बराबर समझते हैं। दुर्भाग्य से कई जगहों पर तो कई दलों ने इसके खिलाफ अभियान भी चलाया। अक्सर लोग कहते हैं कि नोटा को गया मत बेकार हो जाता है और यदि मत बेकार ही करना है तो मतदान की जरूरत ही क्या है! कुछ बारीकियाँ लोकतंत्र में बहुत अहम होती हैं। राज्य के चार मूलभूत अंग होते हैं- जनता, भूभाग, संप्रभुता एवं सरकार। नागरिक समाज और सरकार के लोग मिलकर ही राज्य को क्रियाकारी बनाते हैं। लोकतंत्र में यों तो निर्णायक शक्ति (संप्रभुता) जनता में निहित होती है परंतु सत्ता को चलाने की जिम्मेदारी सरकार की होती है। सरकार की शक्तियाँ इसी तर्क से उसे प्राप्त होती है। लोकतंत्र में यह तय तथ्य है कि राज्य, सरकार आदि सभी ताने बाने जनता के लिए हैं, इसलि

✍️संवाद के लिए हमें सहमत होना होगा कि असहमतियाँ भी साथ रह सकती हैं।

Image
डॉ. श्रीश  Image Source: Imgur मेरा मानना है कि हम जानकारियों के कई वृत्तों पर एक साथ सवार होते हैं जो उम्र और अनुभव के इतर होता है। किसी अनुभव व जानकारी में कोई बहुत आगे हो सकता है और वही व्यक्ति किसी दूसरे अनुभव व जानकारी में बेहद पीछे हो सकता है। यह सबका सच है इसलिए ही शिक्षा व संवाद के पुल गढ़े गए। लेकिन यह स्वाभाविक है कि स्वयं का महसूस किया गया ही अधिक सत्य महसूस हो, ऐसे में कुछ उपागम रचे गए ताकि एक सीमा तक सम्यक बोध तक पहुँचा जा सके। नितांत में बोध नहीं है तो यह स्वीकार कर चलना होगा कि मेरे सहित सभी की सीमा है और हमें सहमत होना होगा कि असहमतियाँ भी साथ रह सकती हैं। अपने बारे में कहूँ तो लगभग रोज ही कोई न कोई मुझे कभी संघी तो कभी वामी कह देता है। मै भीतर सोचता हूँ कि क्या हूँ मै। फिर उत्तर आता है कि देश से प्यार हर किसी को है और सभी अपने-अपने तरीके से इसे निभा भी रहे। वैचारिक संघर्ष तो विकास की एक जरूरी खिड़की है इसलिए किसी पक्ष को खारिज अथवा घृणा से देखने की बजाय उसे उसकी दृष्टि से देखने भर का जतन कर लेने में बुराई नहीं है। राजनीति को इतिहास से समझना जरूरी है। इंटरेस्ट आर्टिकुले

✍️इतनी घृणा में कैसे जिए आप महात्मा?

Image
(किसी तथाकथित साध्वी ने महात्मा गाँधी के पुतले को गोली मारकर नाथूराम गोडसे को याद किया था , उसी पर मेरी प्रतिक्रिया ) डॉ. श्रीश पाठक  Image Source: NY Times ✍️इतनी घृणा में कैसे जिए आप महात्मा? सिर्फ इसलिए कि नए भारत में फिर कोई बाँटकर राज न करने लगे, इसलिए कि नये भारत पर कोई अन्याय का लांछन न लगा सके, इसलिए कि नया भारत सभी को समाहित कर विश्व को अभूतपूर्व उदाहरण दे सके और वसुधैव कुटुम्बकम को चरितार्थ कर सके। अन्ततः एक कायर ने जब आपके नाशवान शरीर को समाप्त कर यह सोचा कि आपके कृतित्व की भी हत्या कर सकेगा, आपने उन अंतिम क्षणों में 'हे राम' पुकार कर उसके बचे खुचे जमीर को भी झिझोड़ दिया होगा। कहते हैं उस आतंकी ने पहले अपना नाम मुस्लिम बताने की कोशिश की थी, कितनी जघन्य थी उसकी मंशा। हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के चरमपंथियों को उन दिनों दंगा चाहिये था ताकि धर्म के आधार पर राष्ट्र बने और एक चरमपंथी निर्बाध सत्ता सुख लिया जा सकता। मुस्लिम अतिवादी इसमें सफल भी हो गये, पर हिंदू अतिवादी वह स्वप्न अभी भी पूरा करना चाहते हैं। हे महात्मा, पहली बार तो आपके बारे में मुझे शिशु मंदिर के आचार्यो

Quoted: The Caravan

Image
The Caravan  " Most of the constituencies in eastern UP go to polls in the last phase of the elections on 19 May, so there is still time for Priyanka to campaign through more districts in the region. Shreesh Pathak, the head of the political science department at Galgotias University, believed that Priyanka’s appointment in eastern Uttar Pradesh was part of a long-term plan. “Placing Priyanka just before Lok Sabha election 2019 in eastern UP, rather than western UP, which is close to Delhi and would have been comparatively easy to manage, shows an ambitious game-plan for Congress,” Pathak said. He added that Priyanka’s appointment was not made keeping only the Lok Sabha elections in mind. “Her speeches clearly establish that she is working here to build the long-term base for the party, which eventually helps it in all the upcoming elections. Losing UP in elections is losing Delhi in the long run.” "

✍️एक राजनीतिक कविता

उम्मीद है आप और अधिक सवर्ण हो चुके होंगे, और अधिक हो चुके होंगे ओबीसी, एस सी, एस टी। पहले से अधिक गहरा हो गया होगा रंग भगवे का, हरे का लाल का नीले का। अब और ठान लिया होगा आपने कि अब बर्दाश्त नहीं करना है कोई आघात अपनी निजी पहचान के खिलाफ बहुत हो गया, आखिर देश हमारा भी है। अभी-अभी आपकी घबराहट फिर बढ़ा दी गई होगी कितना कुछ आपका खतरे में है बता दिया गया होगा और आपने फिर कमर कस ली होगी कि अब चुप नहीं रहना है। वे सारे मुस्कुराए होंगे जब आपने तय किया होगा कि बिजली, पानी, सड़क, रोजगार एक बार फिर जरा इंतजार कर लेंगे लेकिन अपनी पहचान, अपनी जाति, अपना धर्म बचे पहले, नहीं तो बचेगा नहीं कुछ भी। उधर उन्होने उनसे पूछा था कि कैसे जितोगे इस बार फिर चुनाव कि कैसे दोगे जवाब अपनी नाकामियों का उत्तर था, वे प्रश्न ही नहीं होंगे देखना डर बोए हैं चुपचाप, कुछ सरे आम देखना तुम उनका उगना। सारे बुनियादी सवाल एक बार फिर लगा दिए गए हैं किनारे नागरिक अपनी पहचान का सवाल हल करने को उत्सुक है जी, चुनाव का आखिरी चरण है मुद्दों पर भारी समीकरण है। # श्रीशउवाच

फेक न्यूज फिनोमेना

Image
ज़्यादातर लोग 14 फरवरी को वैलेंटाइन दिवस के रूप में मनाते हैं, लेकिन 14 फरवरी, 1931 की सुबह लाहौर में शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी दी गई थी।  'शिक्षा से मै अंग्रेज़ हूँ, संस्कृति से मुस्लिम और दुर्घटनावश हिन्दू हूँ' -जवाहर लाल नेहरू मैचूपो विषाणु, पैरासीटामोल टेबलेट में पाया जा सकता है।  राष्ट्रपति ट्रम्प ने इस्तीफा दिया। भारत में लगाई गई विश्व की सबसे लंबी ऊँची मूर्ति स्टेचू ऑफ यूनिटी में अभी से दिखने लगे हैं  दरार।     ऊपर की ये पाँचों खबरें पूरी तरह से गलत हैं।  भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी 23 मार्च 1931 को दी गई थी। जवाहरलाल नेहरू ने ऐसा वक्तव्य कभी नहीं दिया। पैरासीटामोल दवा पूरी तरह से सुरक्षित है और मैचूपो विषाणु के भारत में पाये जाने की फिलहाल कोई सूचना नहीं हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपना इस्तीफा नहीं दिया है। खबरों के लिबास में यह चारों सूचनाएँ दरअसल भ्रामक, जाली खबरें, फर्जी खबरें या फेक न्यूज हैं। बहुत मुमकिन है कि आपने भी इन खबरों को कहीं पढ़ रखा हो। अपने प्रस्तुतीकरण में ये बिलकुल असली खबरों की तरह ही होती हैं, किन्तु ये फर्जी खबर