क्या नोटा बकवास है?

डॉ. श्रीश पाठक मतदान अवश्य करें, चाहे भले ही नोटा क्यूँ न हो। मतदान न देना और नोटा में बहुत अंतर है। नोटा एक बेहद महत्वपूर्ण साधन है, यह प्रभावी है, सभी दलों ने जानबूझकर इसकी अवहेलना की है क्योंकि यह उनके डाइनिंग रूम के बनाए समीकरण तोड़ता है और अंततः उन्हें जनता के बीच में आने व रहने को मजबूर करता है। राजनीतिक शिक्षा के अभाव में अक्सर लोग नोटा और मतदान ना देना एक बराबर समझते हैं। दुर्भाग्य से कई जगहों पर तो कई दलों ने इसके खिलाफ अभियान भी चलाया। अक्सर लोग कहते हैं कि नोटा को गया मत बेकार हो जाता है और यदि मत बेकार ही करना है तो मतदान की जरूरत ही क्या है! कुछ बारीकियाँ लोकतंत्र में बहुत अहम होती हैं। राज्य के चार मूलभूत अंग होते हैं- जनता, भूभाग, संप्रभुता एवं सरकार। नागरिक समाज और सरकार के लोग मिलकर ही राज्य को क्रियाकारी बनाते हैं। लोकतंत्र में यों तो निर्णायक शक्ति (संप्रभुता) जनता में निहित होती है परंतु सत्ता को चलाने की जिम्मेदारी सरकार की होती है। सरकार की शक्तियाँ इसी तर्क से उसे प्राप्त होती है। लोकतंत्र में यह तय तथ्य है कि राज्य, सरकार आदि सभी ताने बाने जनता के लिए हैं, इसलि