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Showing posts from 2020

TV Debate Participation: India-Nepal Relations

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TV Debate Participation: G-20 and India

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 TV Debate Participation: Gulistan News Channel

TV Debate Participation: कितना काम का है UN

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 Participated in a live news channel debate

TV Debate Participation: Is the World on the Verge of War?

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Live TV Debate Participation at Gulistan News Channel  

TV Debate Participation: US Election

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 Live TV Debate Participation at GULISTAN News Channel

Live Participation: फ्रांस की धार्मिक कट्टरता - क्या सही,क्या गलत

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  कल रात (06/11/2020) 9 बजे The New Bharat के कार्यक्रम संवाद में परिभाग किया। विषय बहुत ही महत्वपूर्ण: 'फ्रांस और धार्मिक कट्टरता' पैनल में मेरे अलावा दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष श्री संजीव सिन्हा जी भी थे और संचालन TNB के फाउंडर श्री Ravi Shukla का था। इस परिचर्चा में धार्मिक कट्टरता, धार्मिक असहिष्णुता, फ्रांस और भारत का सेक्युलरिज्म, फ्रांस की घरेलू राजनीति, आतंकवाद और इस्लाम आदि तमाम विषयों पर सार्थक बात हुई। छनकर जो बात सामने आयी वह यह कि भारत इस सन्दर्भ में फ्रांस ही नहीं पूरे विश्व के लिए एक आशा की किरण बन सकता है और देर-सबेर पूरे विश्व को भारत के सेक्युलरिज्म की अवधारणा को अपनाना होगा।

Live Participation: History of Public Speaking and Democracy

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Speaking as key speaker in the induction program of Devi Ahilya Vishvavidyalay, Indore  

Live Participation: अंतरराष्ट्रीय राजनीति एवं भारतीय विदेश नीति के परिप्रेक्ष्य में महात्मा गांधी

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Live Participation: बच्चों और किशोरों के लिए गांधी

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Live Participation: UN75- 2020 and Beyond

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Live Particiaption: कविता पाठ

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Live Participation: कविता पाठ

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Live Participation: Evolution of Public Speaking and Democracy

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अध्यापक एवं ऑनलाइन माध्यम

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डॉ. श्रीश पाठक* कोरोना महामारी के बीच जहाँ अब लोग घरों से निकल जीवन के जद्दोजहद में एक बार फिर से जुट गए हैं, वहीं विधार्थियों की पीढ़ी को अभी भी भौतिक दूरीकरण निभाते हुए विद्यालयों, विश्वविद्यालयों से यथासंभव दूर ही रखने का प्रयास किया जा रहा। शिक्षा के आदान-प्रदान की प्रक्रिया में पारस्परिक अंतःक्रिया का महत्त्व प्रारंभ से ही पूरी दुनिया में स्थापित है l भौतिक दूरीकरण की विवशता ने शिक्षातंत्र के समक्ष यह भारी चुनौती पेश कर दी कि आखिर पारस्परिकता से लबालब कक्षाएँ अब कैसे हो सकेंगी l शिक्षातंत्र के ठिठकने का अर्थ होता, एक पूरी पीढ़ी के भविष्य की तैयारियों का ठिठकना और यह राष्ट्र के भविष्य पर भी प्रतिगामी असर छोड़ता। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनिओ गुतरेस ने कहा कि- विद्यालयों के बंद होने की वजह से दुनिया पीढ़ीगत त्रासदी से जूझ रही है l तकनीक ने यह चुनौती स्वीकार की और शिक्षा जगत ऑनलाइन कक्षाओं की ओर मुड़ गया l चूँकि चुनौती सहसा आयी थी तो जाहिर है इसकी तैयारी कोई मुकम्मल तो थी नहीं। इससे पहले ऑनलाइन कक्षाओं को अनुपूरक माध्यम की तरह ही सराहा गया था और दुनिया भर के शिक्षाविद इसे एक मजबूत वै

Live Participation: छात्रसंघ चुनाव, समय की माँग है!

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  लोकतंत्र में छात्रसंघ चुनावों की महत्ता है। इसी विषय पर एक परिचर्चा !

Live Participation: भारत-पाकिस्तान गुफ़्तगू

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भारत और पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के अवसर एक चर्चा जिसमें दोनों मुल्कों के लोग शामिल हुए इस उम्मीद से कि आने वाले समय में इतिहास को झाड़-पोछ हम बेहतरी के इरादे से आगे बढ़ेंगे। 

प्रखर दैनंदिनी: 25 July 2020

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25 July 2020 Prakhar Dainandini पहली-पहल जब ध्यान से विश्व का मैप देखा तो अफ्रीका का मैप देख अच्छा लगा था. पुरे विश्व के मैप पर बेढंगी लाइनें बिखरी हुई थीं, और यहाँ अफ्रीका के मैप में कुछ सीधी रेखाएं तो दिखीं. मन हुआ था कि काश दुनिया के देश ऐसे ही होते. धीरे-धीरे जाना कि ये रेखाएं जीवित हैं, इन पर लोगों की जिंदगी निर्भर है. सीधी रेखाएं तो अभिशाप हैं, उपनिवेशवाद और गुलामी की त्रासदी की प्रतीक, वहीं टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ मानव की गतिकता को समाहित करती हैं, स्वीकार करती हैं बल्कि उन्हीं की परिणाम हैं.  Image Source: On the World Map अक्सर जब ठहरकर सोचता हूँ, तो खुद को उधेड़बुन में पाता हूँ. आसपास चीजें कितनी गुथी-मुथी हुई हैं. शायद ही किसी कि जिंदगी इतनी सपाट होती हो कि सब कुछ बस सफ़ेद और काले में बंटा हुआ हो. बहुत मन करता है कि काश चीजें सारी एकदम सुलझी हुई हों. अभी तो पीछे मुड़कर देखने लगो तो दिखता है कि कितना वक्त गुजर गया, गुजरता जा रहा...! हर वक्त लगता है कि लगाम जैसे अपने हाथ में है, लेकिन जब भी ईमानदारी से मुड़ो पीछे तो लगता है कि नहीं मै तो बस बहे जा रहा. शायद सब को ही भ्रम है कि लगाम उनके

अमेरिकन फौजें यूरोप से हटायीं जा रहीं, क्या हैं इसके मायने भारत के लिए?

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In a statement that pitches the US as a factor in the India-China military face-off, secretary of state Mike Pompeo said on Thursday that China’s “threats to India” and Southeast Asia were among the main reasons for the US’s move to reduce its troops in Europe. इमेज व सूचना स्रोत साभार : इकनॉमिक टाइम्स, इनसाइट्स, ग्लोबल टाइम्स, अल जजीरा, द एकोनॉमिस्ट, चाइना डेली, टाइम्स ऑफ इंडिया, साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट, द न्यू यॉर्क टाइम्स, हेजआई, की ट्रेंज, न्यू यॉर्क मैगजीन, ग्लोबसेक, ब्लूमबर्ग क्विंट, फाइनैन्शल टाइम्स एवं बिजनस लाइंस

Live Participation: Aaj Tak Radio Din Bhar Program

अमेरिका के द्वारा यूरोप से अपनी सैन्य टुकड़ियाँ कम करने की घोषणा और उन्हे एशिया में तैनात करने की योजना पर मेरी संक्षिप्त टिप्पणी (7 वें मिनट से) सुनी जा सकती है Aaj Tak Radio पर।

✍️5G से एक दारुण भविष्य की ओर

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डॉ. श्रीश पाठक  Image Source: Express Computer 5G से धीरे-धीरे समूचा ऑफलाइन, ऑनलाइन हो जाएगा। इन्टरनेट ऑफ थिंग्स की तकनीक धीरे-धीरे इन्टरनेट फॉर एवरीथिंग की हो जाएगी। हम अपने क्रमशः पराधीन होते जीवन को स्वयं ही मेहनत के जुटाए पैसों से खरीदेंगे और सभ्य महसूस करेंगे। हर सौ मीटर पर रेडियेशन थूकते मिनीटावर अंततः हमारा प्राकृतिक स्पेस ही छीन लेंगे। इंसानों के साथ-साथ सभी वस्तुओं के साथ हमारे समस्त संबंधों का रिकॉर्ड इन्टरनेट कम्पनियों के पास होगा, जिसे वे मुनाफे के लिए इस्तेमाल करेंगी। हाथ में बंधी घड़ी से उन्हें हमारे शरीर के बारे में सब पता होगा तो हमारे हर क्लिक से वे हमारे द्वारा किए जा सकने वाले अगले क्लिक की संभाविता बेच व्यापार को अगले लेवल पर ले जाएंगी। दुनिया, कुछ बड़ी कंपनियों की गुलाम होगी, यह कुछ ग्लोबल कॉर्पोरेट इंपीरियलिज्म जैसा होगा, जिनके आगे सरकारें अंततः बेबस होंगी या सरकार ही कंपनियों की होंगी, जिसे बस तभी हराया जा सकेगा जब मानव अचानक बिजली और इन्टरनेट प्रयोग करना छोड़ दे, जो लगभग असंभव होगा। मेरे देश में जबकि 5G के होने का अर्थ केवल 'और अधिक नेट स्पीड' ही समझा ज

Live Participation: Aaj Tak Radio Din Bhar Program

नेपाल के कुछ सीमाई इलाकों पर चीन द्वारा कब्जे की खबर पर मेरी संपादित टिप्पणी ( 22 वें मिनट से) सुनी जा सकती है  Aaj Tak Radio  पर।

Live Participation: Social Concerns of Public Speaking (20-06-2020)

View this post on Instagram An eye opening session on social responsibility, and related domains off public speaking. Guest Speaker - Professor Shreesh Pathak (Center for International Studies, AMITY UNIVERSITY) Host - Ashutosh Shrivastav A post shared by LAFZ:The Indian Speakers Forum (@lafz_the_indian_speakers_forum) on Jun 20, 2020 at 5:55am PDT

Live Participation: India-Nepal (23 June, 2020)

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Jubilee Post  पर लाइव प्रस्तुति में भारत-नेपाल संबंधों पर मैंने कुछ बातें साझा की हैं।

कोविड हमारी उम्मीदों को न लॉक कर सकता है न हमें डाउन ही कर सकता है !

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Photo: Shreesh जीवन के सतरंगी सागर में इसप्रकार अनगिन अलबेली नौकाएँ तिरती-फिरती रहती हैं l यूँ तो जगत का हर जीव अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता है, हारता है, उठता है, जीतता है फिर लड़ता है, लेकिन मानव ने बहुधा स्वयं को दाँव पर लगाकर मानवता की रक्षा की है l चौदहवीं सदी के ब्युबोनिक प्लेग जिसने दुनिया के एक-तिहाई लोगों को अपना निशाना बना लिया था, से लेकर आज तक महामारियों का इतिहास सुझाता है कि जानकारी और सावधानी का अभाव ही बीमारियों को त्रासदी में तब्दील करते हैं l मानवता का ज्ञात इतिहास दर्जन भर से अधिक महामारियों की त्रासदियों से अटा पड़ा है l इतिहास के उन पन्नों से गुजरते हुए अनिश्चितता, असुरक्षा, भय के वही भाव उसी शिद्दत से उभरते हैं, जिनमें कमोबेश आज फिर मानवता है l त्रासदियों के इतिहास का हर अध्याय बताता है कि उसके तुरंत बाद मानवता के सुनहरे पन्ने लिखे गए l इन सुनहरे पन्नों के लेखकों की नींव उन्हीं ने बनायीं थी जो उन भयंकर त्रासदियों से गुज़रे थे l दुनिया सामंतवाद के बेलगाम शोषण से मुक्त होने में और अधिक सदियाँ लेती जो महामारी ने मानवता को मजबूर न किया होता l फिर शेष लोगों ने विपत्ति को

Brainstorming about Ideologies

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Cartoon Source: CartoonStock डॉ. श्रीश पाठक  विचारधाराओं के बारे में कुछ बातें जानना बेहद जरूरी हैं। ♦️विचार तो सदा ही मनुष्य जाति की थाती रहे हैं लेकिन विचारधाराओं का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। ♦️किसी भी संज्ञा के साथ लगा - ism उसे विचारधारा नहीं बना देता। विचारधारा सिर्फ वह हो सकती है जो किसी भी मानव घटना की व्याख्या अपने पारिभाषिक संसाधनों से कर सके। ♦️हर विचारधारा की सीमा उसके निश्चित सैद्धांतिक संसाधन ही हैं, इसलिए किसी भी विचारधारा को अंतिम मान लेना दृश्य से अधिक लेंस को महत्व देने सरीखा है। ♦️अधिकाधिक विचारधाराएं किसी एक मानव घटना की कई परस्पेक्टिव से व्याख्या करने के काम में आती हैं, किसी एक व्याख्या को अंतिम मान लेना यह स्वयं की सीमा हो सकती है। ♦️विचारधारा का अतिवाद सबसे जघन्य है, इसने विश्व को दो-दो महायुद्ध दिए हैं और अनगिनत लोगों को लाशों में तब्दील किया है। ♦️कोई भी विचारधारा, स्वयम को सम्पूर्ण नहीं कह सकती। दरअसल कोई भी अवधारणा जो मानव के ऊपर आधारित हो, वह सम्पूर्ण नहीं हो सकती, क्योंकि मनुष्य चेतन है, महज जड़ पदार्थ नहीं है इसलिए लगातार परिवर्तन होता रहता है। ♦️अंततः क

कितना कुछ अनटच्ड रह जाता है न , टचस्क्रीन मोहब्बतों के दौर में l

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कितना कुछ अनटच्ड रह जाता है न , टचस्क्रीन मोहब्बतों के दौर में l Image Source: CBN फिर भी इंसान एक जिंदा शै है, उसकी जरूरतों की जिंदा वज़हें हैं l मोबाइल फ़ोन की सुर लय ताल पर ही सही पर भावनाएं बहती तो हैं, मन की सेल्फी पर किसी की लाइक का इंतज़ार रहता तो है l सहसा कनेक्ट हो उम्मीदें ट्रांसफर होने लग जाती हैं, दिल के टावर्स यहाँ वहाँ के सिग्नल पकड़ चैट में मशगूल हो अरमानों की डीपी बदलते रहते ही हैं l यों चलता रहता है, मन डरता रहता है, स्माइलीज से मुस्कान आ पाती तो सपने टूटने का डर वर्चुअल स्पेस से बाहर ना रिसता l #श्रीशउवाच

Three Things by Dr. Shreesh: PM Modi Addresses NAM Contact Group

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Three Things by Dr. Shreesh क्या है NAM संपर्क समूह? The Coordinating Bureau of the NAM सदस्य देशों के साथ पारस्परिक संपर्क और सहयोग की निरंतरता के लिए प्रयत्न करती रहती हैl The Coordinating Bureau of the NAM इस कार्य के लिए बनायीं गयीं विभिन्न वर्किंग कमेटीज, टास्क फोर्सेज, कांटेक्ट ग्रुप्स एवं अन्य कमेटीज की देखरेख करती रहती है l NAM संपर्क समूह, सदस्य देशों से संपर्क सूत्रों को अपडेट कर उन्हें आपस में सतत जोड़े रखने की कोशिश करती है l Image Source: www.narendramodi.in क्यों महत्वपूर्ण है Online Summit of NAM Contact Group? भारत की विदेश नीति की कोई भी विवेचना, NAM के उल्लेख के बिना पूरी नहीं हो सकती l शीत युद्ध के बाद नए-नवेले आजाद हुए देशों के लिए एक सक्रिय मंच के तौर पर इसकी उपयोगिता मद्धम पड़ती गयी क्योंकि अब दुनिया द्विध्रुवीय राजनीति के चंगुल से मुक्त हो गयी थी l शीत युद्ध के बाद भी चूँकि NAM के उद्देश्यों की पूर्ति अभी भी नहीं हो सकी है तो एक मंच के तौर पर इसकी उपयोगिता समाप्त नहीं हुई थी, और फिर भारतीय विदेश नीति की कुछ चुनिंदा प्रारम्भिक उपलब्धियां NAM के खाते से आयीं तो भारत

✍️तहजीब के मायने यों तो गहरे हो सकते थे पर फ़िलहाल पर्दादारी इसका शॉर्टकट है

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Manto Film  _____ कुछ लोग जिन्हें जमाना होशियार नहीं कहता वे इस तरकीब को कभी समझ नहीं पाते कि तरक्की के लिए कितनी ही दिखाई देने वाली चीजों को नज़रअंदाज किया जाता है और कितनी ही चीजें जबरन देखी जाती हैं, जो मौजूद में कहीं वज़ूद नहीं रखतीं। मंटो उनमें से रहे होंगे, जो ज़िंदगी भर न समझ पाए कि जो चीज जैसी है उसे वैसी ही लिख देने में हर्ज क्या है ! नज़र आने वाली हर शै को हर नज़र देख सके, जरूरी नहीं। यकीन मानिए दिमाग ही देखता है, आँखें बस गुलामी करती हैं। दीद, दिमाग की तो तसदीक़ आँख की। कुछ के पास नज़र होती है, वे देखते हैं और बयां करते हैं। और फिर ये जरूरी नहीं कि वह बयानात सबको पसंद आये।  अल्लामा इक़बाल का एक शेर है:  “तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा” तहजीब के मायने यों तो गहरे हो सकते थे पर फ़िलहाल पर्दादारी इसका शॉर्टकट है। सारी इज्जत इसी छुपाव में है, बनाव में है। मंटो की परेशानी एक और भी है। लेखक मंटो असल मंटो में फ़र्क़ नहीं बरत पाता। बहुतेरे बरत लेते हैं, शान से जीते हैं, लोग-बाग उनकी अदब करते हैं। मंटो एक जगह लिखते हैं कि-

बुद्ध एक व्यक्ति के विराट प्रकटीकरण की सम्भावना को सरल चरितार्थ कर रहे

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Image Source: BBC Hindi और सहसा उन्होंने बुद्ध के अवदान को नकारना शुरू किया है। उन्हें इसपर तर्क नहीं सुनना। उन्हें यह विश्वास दिलाया गया है कि बुद्ध की शिक्षा वेदों के विरुद्ध हैं। भला हो शंकर का जिन्होंने इस भारत भूमि को बचा लिया है अन्यथा यह भूमि बौद्ध भूमि में परिणत हो जाती। ऐसे आकस्मिक निष्कर्ष स्वाभाविक हैं जब दर्शन को अक्षरशः समझने की कवायद होती है। सिद्धार्थ के कितने ही शिक्षक सनातन धर्म के अलग अलग सम्प्रदायों से आते हैं। सिद्धार्थ सभी में रमते हैं और मध्यम मार्ग तक पहुंचते हैं। बुद्ध सरल भाषा में सोSम ही कह रहे। वेदांत के समानांतर ही यात्रा कर रहे। धर्म की तत्कालीन राजनीति को खारिज कर एक सामाजिक नैतिक विकल्प सुझा रहे। बुद्ध एक व्यक्ति के विराट प्रकटीकरण की सम्भावना को सरल चरितार्थ कर रहे। शुद्ध आध्यात्मिक मूल्यों में अद्भुत साम्य परिलक्षित होता है, इसमें काल, भूगोल और भाषा का अन्तर आने नहीं पाता। कबीर के राम निराकार हो जाते हैं तो बुद्ध अवतार मान लिए जाते हैं। रामकृष्ण ने जब यह जाना, परमहंस हुए। सनातन धारा निर्झर बहती है। इसकी एक बूंद में ही सागर है, यही निरखना है, यही समझना ह

स्कोप, फील्ड का नहीं, आपका होता है

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Image Source: Noktan बारहवीं के बाद क्या? मुझसे कई बार पूछा जाता है कि बच्चे को आगे क्या पढ़ाएँ, खासकर तब जब इंजीनियरिंग व मेडिकल का विकल्प ना चुनना हो। पूछते हैं कि किस क्षेत्र में कितना स्कोप है। मै बेधड़क कहता हूँ कि स्कोप फील्ड का नहीं स्टूडेंट का होता है। इंसान को हर फील्ड की जरूरत जबतक बनी हुई है, काबिल व्यक्ति की जरूरत भी बनी हुई है। आप होशियार हैं, मेहनती हैं और स्वयं में सुधार को तत्पर हैं तो कोई भी फील्ड आपकी जिंदगी बना सकता है। हर फील्ड को अपने सिकंदर की जरूरत होती है। इसके उलट कोई भी क्षेत्र बेहतरीन कैरियर की चकाचौंध सुरक्षा नहीं दे सकता। पड़ोस के किसी का कहीं सफल हो जाना आपके लिए भी उस क्षेत्र का बेहतरीन हो जाना नहीं साबित करता। आप, श्रम व लचीलेपन के लिए तैयार नहीं हैं तो किसी भी फील्ड में आपका स्कोप नहीं है। भविष्य का मामला है, कई बार जवाब देते नहीं बनता। ज़ाहिर है कैरियर के बारे में सवाल करते लोगों को शिक्षा के उद्देश्य पर प्रवचन नहीं किया जा सकता। लोगों को पैसा, सम्मान, सुरक्षा चाहिए ही होता है और इसमें कुछ गलत नहीं लेकिन ये तीनों गलत तरीके से भी जरूर कमाए जा सकते हैं।

मार्क्स का जन्मदिन

आज मार्क्स का जन्मदिन है. इस मौके पर कहना चाहता हूँ कि समाजवाद, वामपंथ, कम्युनिज्म और मार्क्सवाद एक-दूसरे से संबद्ध होते हुए भी स्वतंत्र अभीमुखीकरण रखते हैं. कहना यह भी है कि रूस में लेनिन ने जबरन वर्ग चेतना वेनगार्ड्स के माध्यम रोपित की और चीन में माओ ने यह मानते हुए कि कम्युनिज्म के बाद भी द्वन्दात्मक पदार्थवाद जारी रहता है और सतत क्रांति का सिद्धांत अपनाया; इसलिए रूस और चीन की सफलता और असफलता सीधे ही मार्क्सवाद की सफलता-असफलता नहीं है. मै बारंबार इस निष्कर्ष पर भी पहुंचता हूँ कि पूंजीवाद की जो विसंगतियाँ मार्क्सवाद ने चिन्हित कीं, उन्हीं पर काम करके पूंजीवाद ने कल्याणकारी राज्य का चोला पहना और वैश्वीकरण के रूप में आज समूचे विश्व में प्रभावी है. #श्रीशउवाच

मुझे अपनी नाकामियाँ भी कम प्रिय नहीं हैं, उनमें भी मै ही हूँ।

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04/05/2013 Image Source: The Ranch मुझे जीवन में एक पग भी चलना निरर्थक नहीं लगता। दिशाहीन हो भटकना भी कुछ अर्थ लिए होता है। अनुभव से कह सकता हूँ, जिसे लोग गलतियाँ कह देते हैं, गहरे में जानता हूँ उन्हीं से मुझे ताकत भी मिलती रही है। मै ये जानता हूँ, जो फैसले लिए जा चुके हैं,वे गलत नहीं हो सकते है।नज़रिये की बात है। हाँ, थोड़ा बाद में समझ आता है! जो बीत गया, उसे कोसना स्वयं को और भी कमजोर करना है। आज, अभी जो है क्या वो उपलब्धि नहीं है और जो कुछ भी है अभी उसे पाने में यदि आप सोचते हैं केवल सही निर्णयों का योगदान है तो यकीनन आप पक्षपाती हो रहे हैं ! व्यतीत-अतीत उपलब्धि ही है। वर्तमान, प्रकृति का उपहार है, जिसमें हम सर्वाधिक शक्तिशाली हैं और भविष्य मोहक आशा है प्रेरणा है। सकारात्मक होना स्वीकारना है सर्वस्व को। इसमें क्या बुरा है। मुझे अपनी नाकामियाँ भी कम प्रिय नहीं हैं, उनमें भी मै ही हूँ। वे भी मुझे सम्पूर्ण बनाते हैं। #श्रीशउवाच

#YesIMSecular

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Satish Acharya अब तो नहीं ही है लेकिन काफी लंबे समय तक इसका जरूर फर्क़ पड़ता था कि जिससे मिल रहा हूँ या बात कर रहा हूँ, वह किस जाति और धर्म का है। एक गाढ़ा पूर्वाग्रह रहता ही था। फिर कितने ही लोगों से मौका मिला और अलग-अलग लोग एक-एक कर कितने ही पूर्वाग्रह तोड़ते चले गए। सौभाग्य से बेहतर पढ़ने को मिला तो और भीतर से कई पूर्वाग्रह टूटे। सेकुलर होना मेरे लिए अब एक कोई राजनीतिक स्टैंड नहीं है। यह अब जीवनशैली का हिस्सा है। आसान नहीं है क्योंकि जाति और धर्म, अपने देश की राजनीति की कबाड़ साइकल के कभी न पंक्चर होने वाले दो पहिए हैं और लगभग हर दल को चुनाव में इसी जैसी एक साइकल पर सवार होने की आदत पड़ गई है, तो लगभग हर चुनाव के आसपास ऐसा जरूर कुछ होता या किया या कराया जाता है जिसकी वज़ह से जाति और धर्म के आधार पर नफरत जरूर बह रही होती है। उस बयार में भ्रामक सूचनाएँ बांटी जाती हैं और ऐसे में एक तार्किक व्यक्ति भी कब विक्टिम से परपीट्रेटर बन जाता है, पता ही नहीं चलता। बचपन में नहीं जानता था, काफी बाद में सहसा मैंने पूछा और पापा जी ने बताया था कि मेरा यह संस्कृत नाम श्रीश, मेरे पहले स्कूल 'इंडियन

Political Literacy: संप्रभुता (Sovereignty)

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28/04/2020 Image Source: Thesaurus.Plus संभव हो और आप अर्थशास्त्र से अर्थ निकाल लें, मनोविज्ञान से मन, बैंकिंग से बैंक, समाजशास्त्र से समाज और इतिहास से अतीत, तो इन सब्जेक्ट्स में कुछ बाकी नहीं रहेगा l ठीक उसीप्रकार राजनीतिशास्त्र में यदि संप्रभुता की अवधारणा निकाल दी जाय तो यह सब्जेक्ट अपना केन्द्रक खो देगा और निष्प्राण हो जाएगा l राजनीति के विद्यार्थी हों और संप्रभुता की अवधारणा से अनभिज्ञ या अस्पष्टता हो, तो अन्य सभी प्रयत्न अर्थहीन हैं l राजनीति का अध्ययन करते हुए बार-बार यह महसूस होगा कि एब्स्ट्रेक्ट इतने भी शक्तिशाली हो सकते हैं l राजनीति में जिन तथ्यों की साधिकार चर्चा की जाती है उनमें से अधिकांश कोई भौतिक सत्ता नहीं रखते, टैंजीबल नहीं हैं l लेकिन अपने प्रभाव में वे इतने प्रबल हैं कि उनका एब्स्ट्रेक्ट होने पर सहसा विश्वास नहीं होता l राज्य भी एक अवधारणा ही है, इसे आप स्पर्श नहीं कर सकते, यह हमारे मन में क्रमशः स्थापित एक अवधारणा है l हाँ, अवश्य ही राज्य के अन्यान्य एजेंसियों और एजेंटों से हम रूबरू होते हैं l यों ही संप्रभुता की अवधारणा भी एक एब्स्ट्रेक्ट ही है लेकिन यह राजनीति क

वी शुड नीड टू रीबूट टूगेदर।

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(फिल्म थप्पड़ की समीक्षा- डॉ. श्रीश पाठक) -------- Image Source: Scroll आँख सचमुच देख नहीं पाती। सब सामने ही तो होता है। दूसरे करते हैं, हम करते हैं, लेकिन जो हम करते हैं, देख कहाँ पाते हैं। ऐसा शायद ही कोई हो, जिसका दावा यह हो कि उसने किसी पति को किसी पत्नी को एक बार भी मारते न देखा हो। उसकी हया के चर्चे हुए और इसके गुस्से को रौब कहा गया, और यों ही हम सलीकेदार कहलाये। सभ्यता का दारोमदार स्त्रियों को बना उन्हें जब कि लगातार यों ढाला गया कि वे नींव की ईंट बनकर खुश रहें, सजी रहें, पूजी जाती रहें, ठीक उसी समय उनका वज़ूद गलता रहा, आँखें देख न सकीं। हमें बस इतना ही सभ्य होना था कि हम समझ सकें कि जब मेहनत, प्रतिभा और आत्मविश्वास जेंडर देखकर नहीं पनपते तो फिर हमें एकतरफ़ा सामाजिक संरचना नहीं रचनी। अफ़सोस, हम इतने भी सभ्य न हो सके। बहुत तरह की मसाला फ़िल्मों के बीच एक उम्मीद की तरह कभी निर्देशक प्रकाश झा उभरे थे, जिन्होंने ऐसे मुद्दे अपनी फ़िल्मों में छूने शुरू किए, जिनपर समाज और राजनीति को खुलकर बात करने की जरूरत थी। बाद में उन्होंने अपनी फ़िल्मों में एक बीच का रास्ता ढूँढना शुरू किया जिसमें