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Showing posts from 2020

TV Debate Participation: India-Nepal Relations

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TV Debate Participation: G-20 and India

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 TV Debate Participation: Gulistan News Channel

TV Debate Participation: कितना काम का है UN

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 Participated in a live news channel debate

TV Debate Participation: Is the World on the Verge of War?

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Live TV Debate Participation at Gulistan News Channel  

TV Debate Participation: US Election

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 Live TV Debate Participation at GULISTAN News Channel

Live Participation: फ्रांस की धार्मिक कट्टरता - क्या सही,क्या गलत

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  कल रात (06/11/2020) 9 बजे The New Bharat के कार्यक्रम संवाद में परिभाग किया। विषय बहुत ही महत्वपूर्ण: 'फ्रांस और धार्मिक कट्टरता' पैनल में मेरे अलावा दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष श्री संजीव सिन्हा जी भी थे और संचालन TNB के फाउंडर श्री Ravi Shukla का था। इस परिचर्चा में धार्मिक कट्टरता, धार्मिक असहिष्णुता, फ्रांस और भारत का सेक्युलरिज्म, फ्रांस की घरेलू राजनीति, आतंकवाद और इस्लाम आदि तमाम विषयों पर सार्थक बात हुई। छनकर जो बात सामने आयी वह यह कि भारत इस सन्दर्भ में फ्रांस ही नहीं पूरे विश्व के लिए एक आशा की किरण बन सकता है और देर-सबेर पूरे विश्व को भारत के सेक्युलरिज्म की अवधारणा को अपनाना होगा।

Live Participation: History of Public Speaking and Democracy

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Speaking as key speaker in the induction program of Devi Ahilya Vishvavidyalay, Indore  

Live Participation: अंतरराष्ट्रीय राजनीति एवं भारतीय विदेश नीति के परिप्रेक्ष्य में महात्मा गांधी

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Live Participation: बच्चों और किशोरों के लिए गांधी

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Live Participation: UN75- 2020 and Beyond

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Live Particiaption: कविता पाठ

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Live Participation: कविता पाठ

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Live Participation: Evolution of Public Speaking and Democracy

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अध्यापक एवं ऑनलाइन माध्यम

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डॉ. श्रीश पाठक* कोरोना महामारी के बीच जहाँ अब लोग घरों से निकल जीवन के जद्दोजहद में एक बार फिर से जुट गए हैं, वहीं विधार्थियों की पीढ़ी को अभी भी भौतिक दूरीकरण निभाते हुए विद्यालयों, विश्वविद्यालयों से यथासंभव दूर ही रखने का प्रयास किया जा रहा। शिक्षा के आदान-प्रदान की प्रक्रिया में पारस्परिक अंतःक्रिया का महत्त्व प्रारंभ से ही पूरी दुनिया में स्थापित है l भौतिक दूरीकरण की विवशता ने शिक्षातंत्र के समक्ष यह भारी चुनौती पेश कर दी कि आखिर पारस्परिकता से लबालब कक्षाएँ अब कैसे हो सकेंगी l शिक्षातंत्र के ठिठकने का अर्थ होता, एक पूरी पीढ़ी के भविष्य की तैयारियों का ठिठकना और यह राष्ट्र के भविष्य पर भी प्रतिगामी असर छोड़ता। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनिओ गुतरेस ने कहा कि- विद्यालयों के बंद होने की वजह से दुनिया पीढ़ीगत त्रासदी से जूझ रही है l तकनीक ने यह चुनौती स्वीकार की और शिक्षा जगत ऑनलाइन कक्षाओं की ओर मुड़ गया l चूँकि चुनौती सहसा आयी थी तो जाहिर है इसकी तैयारी कोई मुकम्मल तो थी नहीं। इससे पहले ऑनलाइन कक्षाओं को अनुपूरक माध्यम की तरह ही सराहा गया था और दुनिया भर के शिक्षाविद इसे एक मजबूत वै

Live Participation: छात्रसंघ चुनाव, समय की माँग है!

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  लोकतंत्र में छात्रसंघ चुनावों की महत्ता है। इसी विषय पर एक परिचर्चा !

Live Participation: भारत-पाकिस्तान गुफ़्तगू

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भारत और पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के अवसर एक चर्चा जिसमें दोनों मुल्कों के लोग शामिल हुए इस उम्मीद से कि आने वाले समय में इतिहास को झाड़-पोछ हम बेहतरी के इरादे से आगे बढ़ेंगे। 

प्रखर दैनंदिनी: 25 July 2020

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25 July 2020 Prakhar Dainandini पहली-पहल जब ध्यान से विश्व का मैप देखा तो अफ्रीका का मैप देख अच्छा लगा था. पुरे विश्व के मैप पर बेढंगी लाइनें बिखरी हुई थीं, और यहाँ अफ्रीका के मैप में कुछ सीधी रेखाएं तो दिखीं. मन हुआ था कि काश दुनिया के देश ऐसे ही होते. धीरे-धीरे जाना कि ये रेखाएं जीवित हैं, इन पर लोगों की जिंदगी निर्भर है. सीधी रेखाएं तो अभिशाप हैं, उपनिवेशवाद और गुलामी की त्रासदी की प्रतीक, वहीं टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ मानव की गतिकता को समाहित करती हैं, स्वीकार करती हैं बल्कि उन्हीं की परिणाम हैं.  Image Source: On the World Map अक्सर जब ठहरकर सोचता हूँ, तो खुद को उधेड़बुन में पाता हूँ. आसपास चीजें कितनी गुथी-मुथी हुई हैं. शायद ही किसी कि जिंदगी इतनी सपाट होती हो कि सब कुछ बस सफ़ेद और काले में बंटा हुआ हो. बहुत मन करता है कि काश चीजें सारी एकदम सुलझी हुई हों. अभी तो पीछे मुड़कर देखने लगो तो दिखता है कि कितना वक्त गुजर गया, गुजरता जा रहा...! हर वक्त लगता है कि लगाम जैसे अपने हाथ में है, लेकिन जब भी ईमानदारी से मुड़ो पीछे तो लगता है कि नहीं मै तो बस बहे जा रहा. शायद सब को ही भ्रम है कि लगाम उनके

अमेरिकन फौजें यूरोप से हटायीं जा रहीं, क्या हैं इसके मायने भारत के लिए?

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In a statement that pitches the US as a factor in the India-China military face-off, secretary of state Mike Pompeo said on Thursday that China’s “threats to India” and Southeast Asia were among the main reasons for the US’s move to reduce its troops in Europe. इमेज व सूचना स्रोत साभार : इकनॉमिक टाइम्स, इनसाइट्स, ग्लोबल टाइम्स, अल जजीरा, द एकोनॉमिस्ट, चाइना डेली, टाइम्स ऑफ इंडिया, साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट, द न्यू यॉर्क टाइम्स, हेजआई, की ट्रेंज, न्यू यॉर्क मैगजीन, ग्लोबसेक, ब्लूमबर्ग क्विंट, फाइनैन्शल टाइम्स एवं बिजनस लाइंस

Live Participation: Aaj Tak Radio Din Bhar Program

अमेरिका के द्वारा यूरोप से अपनी सैन्य टुकड़ियाँ कम करने की घोषणा और उन्हे एशिया में तैनात करने की योजना पर मेरी संक्षिप्त टिप्पणी (7 वें मिनट से) सुनी जा सकती है Aaj Tak Radio पर।

✍️5G से एक दारुण भविष्य की ओर

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डॉ. श्रीश पाठक  Image Source: Express Computer 5G से धीरे-धीरे समूचा ऑफलाइन, ऑनलाइन हो जाएगा। इन्टरनेट ऑफ थिंग्स की तकनीक धीरे-धीरे इन्टरनेट फॉर एवरीथिंग की हो जाएगी। हम अपने क्रमशः पराधीन होते जीवन को स्वयं ही मेहनत के जुटाए पैसों से खरीदेंगे और सभ्य महसूस करेंगे। हर सौ मीटर पर रेडियेशन थूकते मिनीटावर अंततः हमारा प्राकृतिक स्पेस ही छीन लेंगे। इंसानों के साथ-साथ सभी वस्तुओं के साथ हमारे समस्त संबंधों का रिकॉर्ड इन्टरनेट कम्पनियों के पास होगा, जिसे वे मुनाफे के लिए इस्तेमाल करेंगी। हाथ में बंधी घड़ी से उन्हें हमारे शरीर के बारे में सब पता होगा तो हमारे हर क्लिक से वे हमारे द्वारा किए जा सकने वाले अगले क्लिक की संभाविता बेच व्यापार को अगले लेवल पर ले जाएंगी। दुनिया, कुछ बड़ी कंपनियों की गुलाम होगी, यह कुछ ग्लोबल कॉर्पोरेट इंपीरियलिज्म जैसा होगा, जिनके आगे सरकारें अंततः बेबस होंगी या सरकार ही कंपनियों की होंगी, जिसे बस तभी हराया जा सकेगा जब मानव अचानक बिजली और इन्टरनेट प्रयोग करना छोड़ दे, जो लगभग असंभव होगा। मेरे देश में जबकि 5G के होने का अर्थ केवल 'और अधिक नेट स्पीड' ही समझा ज

Live Participation: Aaj Tak Radio Din Bhar Program

नेपाल के कुछ सीमाई इलाकों पर चीन द्वारा कब्जे की खबर पर मेरी संपादित टिप्पणी ( 22 वें मिनट से) सुनी जा सकती है  Aaj Tak Radio  पर।

Live Participation: Social Concerns of Public Speaking (20-06-2020)

View this post on Instagram An eye opening session on social responsibility, and related domains off public speaking. Guest Speaker - Professor Shreesh Pathak (Center for International Studies, AMITY UNIVERSITY) Host - Ashutosh Shrivastav A post shared by LAFZ:The Indian Speakers Forum (@lafz_the_indian_speakers_forum) on Jun 20, 2020 at 5:55am PDT

Live Participation: India-Nepal (23 June, 2020)

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Jubilee Post  पर लाइव प्रस्तुति में भारत-नेपाल संबंधों पर मैंने कुछ बातें साझा की हैं।

लिखना तो पड़ेगा

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#लिखना_पड़ेगा डॉ. श्रीश पाठक Image Source: Newsclick कुछ पुराने प्रबुद्ध चूँकि केवल सकारात्मक ख़बर लिख रहे तो हम जैसे अनाड़ियों को खबर की नकारात्मकता स्पर्श करनी ही होगी। सूचनाओं का लब्बोलुआब कहता है कि चीन के मुद्दे पर दिल्ली लापरवाह निकली है। कब तक वीर जवानों की बहादुरी और शहादतों तले मुँह छिपाता रहेगा दिल्ली दल। क्या यह सूचना नहीं थी कि सीमा पर चीनी पहले ही निर्माण कार्य कर रहे और धीरे-धीरे हमारी ओर कब्जा किए जा रहे? यह टकराव सम्भावित ही था, मार्च में भी आशंका व्यक्त की गई थी, दिल्ली की तैयारी क्या थी? उस निर्मम ठिठुरते तापमान में देश के बहादुर जवान गश्त लगाएंगे, देखेंगे कि कहीं कोई चीनी तो नहीं है आसपास, एक इंच भी वह भीतर तो नहीं बढ़ गया और अगर उन्हें चीनी दिखायी पड़ते हैं, उनपर वीभत्स आक्रमण करते हैं तो वह हथियार होने के बावजूद 1996 और 2005 के द्विपक्षीय समझौते के हिसाब से उसे इस्तेमाल नहीं करेंगे - ये निर्देश हैं दिल्ली से जयशंकर जी के? चीनी सैनिकों की हलचल की सूचना तो रही ही होगी, आज के ज़माने में चीजें सहसा नहीं होतीं। आपातकाल के लिए कुछ तो निर्देश रहे होंगे? पहले 3 फिर 20 जवान

जो लोग चीनी सामान का बहिष्कार करके चीन को सबक सिखाना चाहते हैं, खासे भोले हैं।

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डॉ. श्रीश पाठक  Image Source: The Week पूरी विनम्रता से कहना चाहता हूँ कि जो लोग चीनी सामान का बहिष्कार करके चीन को सबक सिखाना चाहते हैं, खासे भोले हैं। सरकार की देखरेख में अपनी सीमा के भीतर जो चायनीज माल आ गया, उसमें किसी भारतीय का निवेश हो चुका, अथवा उसकी देनदारी तय हुई और उसी क्षण भारतीय कोष में एक नियत सीमा कर राशि भी पहुँच गई। इसके बाद से चीनी बहिष्कार, चीनी नहीं रह जाता, वह भारतीय व्यावसायियों का बहिष्कार हो जाता है। आर्थिक नीति के स्तर पर और सीमा पर ये दो ऐसे जगह हैं जहाँ चायनीज माल को रोका जा सकता है और इन दोनों ही जगहों पर कार्यकारी शक्ति सरकार के पास है। सचमुच अगर चायनीज माल का बहिष्कार करना है तो इन्हीं दो जगहों पर सरकार को खुलकर प्रतिबंध लगाना होगा। इसके बाद चीनी माल का बहिष्कार अथवा चीनी ऐप की अनइंस्टालिंग महज नारे हैं। सरकार के एक इशारे पर प्ले स्टोर/ ऐप स्टोर के भारतीय संस्करण से चायनीज ऐप हटाए जा सकते हैं। सरकार क्यूँ ऐसा नहीं करती, पर सत्ताधारी राजनीतिक दल के लोकल गुर्गे ऐसा क्यूँ करने की कोशिश करते हैं। सरकार को दुनिया भर के मंचों पर जाना होता है, वहाँ राजनीतिक-आर्थिक

कोविड हमारी उम्मीदों को न लॉक कर सकता है न हमें डाउन ही कर सकता है !

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Photo: Shreesh जीवन के सतरंगी सागर में इसप्रकार अनगिन अलबेली नौकाएँ तिरती-फिरती रहती हैं l यूँ तो जगत का हर जीव अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता है, हारता है, उठता है, जीतता है फिर लड़ता है, लेकिन मानव ने बहुधा स्वयं को दाँव पर लगाकर मानवता की रक्षा की है l चौदहवीं सदी के ब्युबोनिक प्लेग जिसने दुनिया के एक-तिहाई लोगों को अपना निशाना बना लिया था, से लेकर आज तक महामारियों का इतिहास सुझाता है कि जानकारी और सावधानी का अभाव ही बीमारियों को त्रासदी में तब्दील करते हैं l मानवता का ज्ञात इतिहास दर्जन भर से अधिक महामारियों की त्रासदियों से अटा पड़ा है l इतिहास के उन पन्नों से गुजरते हुए अनिश्चितता, असुरक्षा, भय के वही भाव उसी शिद्दत से उभरते हैं, जिनमें कमोबेश आज फिर मानवता है l त्रासदियों के इतिहास का हर अध्याय बताता है कि उसके तुरंत बाद मानवता के सुनहरे पन्ने लिखे गए l इन सुनहरे पन्नों के लेखकों की नींव उन्हीं ने बनायीं थी जो उन भयंकर त्रासदियों से गुज़रे थे l दुनिया सामंतवाद के बेलगाम शोषण से मुक्त होने में और अधिक सदियाँ लेती जो महामारी ने मानवता को मजबूर न किया होता l फिर शेष लोगों ने विपत्ति को

✍️रास्तों पर कांटें हैं, इन्हें गुलाब कहने भर से सफर नहीं कट सकता।

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Image Source: France24 डॉ. श्रीश पाठक वजहें अधिकतर नाजायज हैं और कुछ जायज हैं लेकिन यह सच है कि देश कोरोना से वैसे जूझ नहीं सका, जैसी उम्मीद थी। केंद्र सरकार मानो यह मानकर चल रही थी कि भारत में यह बीमारी अपने रौद्र रूप में नहीं आने पाएगी। जिस देश की सरकारें भ्रष्ट हों और कराधान का झोला बस बड़ा करने की फिराक में रहती हों, उद्योगपतियों के इशारे पर स्वास्थ्य, शिक्षा के बुनियादी क्षेत्रों के बाद रेलवे तक को निजीकरण की आग में झोंकने को बेताब हों, वहाँ कोरोना जैसी महामारी जानमाल के खतरनाक नुकसान के साथ व्यवस्था के अश्लील परतों को उघाड़ तो देगी ही। जरा सोचिए आज के दिन रेलवे निजी हाथों में होता तो क्या होता। सभी छोटे-बड़े डॉक्टर अगर निजी अस्पतालों में होते तो क्या होता। यह तो सभी जानते थे कि महज बड़बोलेपन से समुचित आर्थिक नीतियाँ नहीं बनतीं। अर्थव्यवस्था के सुर, भाजपा के पिछले कार्यकाल के आखिरी वर्ष में ही बिगड़ चुके थे, फिर देश ने एक बेहद खर्चीला चुनाव देखा। नोटबंदी ने मझोले व्यावसायियों की कमर तोड़ी थी, जिनसे अर्थव्यवस्था को जरूरी पुश मिलता है। भारत से आर्थिक रूप से कमजोर भी कुछ देश हैं जिन्

Brainstorming about Ideologies

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Cartoon Source: CartoonStock डॉ. श्रीश पाठक  विचारधाराओं के बारे में कुछ बातें जानना बेहद जरूरी हैं। ♦️विचार तो सदा ही मनुष्य जाति की थाती रहे हैं लेकिन विचारधाराओं का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। ♦️किसी भी संज्ञा के साथ लगा - ism उसे विचारधारा नहीं बना देता। विचारधारा सिर्फ वह हो सकती है जो किसी भी मानव घटना की व्याख्या अपने पारिभाषिक संसाधनों से कर सके। ♦️हर विचारधारा की सीमा उसके निश्चित सैद्धांतिक संसाधन ही हैं, इसलिए किसी भी विचारधारा को अंतिम मान लेना दृश्य से अधिक लेंस को महत्व देने सरीखा है। ♦️अधिकाधिक विचारधाराएं किसी एक मानव घटना की कई परस्पेक्टिव से व्याख्या करने के काम में आती हैं, किसी एक व्याख्या को अंतिम मान लेना यह स्वयं की सीमा हो सकती है। ♦️विचारधारा का अतिवाद सबसे जघन्य है, इसने विश्व को दो-दो महायुद्ध दिए हैं और अनगिनत लोगों को लाशों में तब्दील किया है। ♦️कोई भी विचारधारा, स्वयम को सम्पूर्ण नहीं कह सकती। दरअसल कोई भी अवधारणा जो मानव के ऊपर आधारित हो, वह सम्पूर्ण नहीं हो सकती, क्योंकि मनुष्य चेतन है, महज जड़ पदार्थ नहीं है इसलिए लगातार परिवर्तन होता रहता है। ♦️अंततः क

महापुरुष वे होते हैं जिनकी अपनों की परिभाषा सुदीर्घ होती है

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डॉ. श्रीश पाठक  Image Source: INC विज्ञान अपने पहले चरम पर था और जहाँ विज्ञान नित नया चमत्कार कर पूराने चमत्कारों की जगह ले रहा था, उस शख़्स की पढ़ाई उसी भूगोल पर मुकम्मल हुई थी। बावजूद इसके उन्हें पता था कि इतिहासबोध कितना जरूरी है किसी राष्ट्र के विकास के लिए और अच्छा है कि नयी पीढ़ी विज्ञान के साथ साथ देश व दुनिया का सम्यक इतिहास जाने। एक पिता के रूप में उस शख्स ने अपनी बड़ी हो रही बिटिया के लिए जेल से खत लिखे जिससे बाद में 'ग्लिम्प्स ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री' और 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' जैसे किताबों की पृष्ठभूमि बनी । सालों की गुलामी, गरीबी और विभाजन के झुलसते नफ़रतों के बीच देश को गुटनिरपेक्ष आंदोलन का अगुआ बनाकर उस स्तर की विश्वशक्ति बनाया, जिसके ख्वाब आज के हुक्मरान भी देखें वो भी तब जब देश कटोरा नहीं बनाता था । जिस शख्स के मजबूत नेतृत्व में देश की संविधान निर्माण प्रक्रिया पूरी हुई और व्यापक मताधिकार के आधार पर पहला आम चुनाव सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ जबकि कमोबेश उसी समय आजाद हुए अन्य पड़ोसी देशों में यह प्रक्रिया हाल तक अधूरी रही है । देश के उद्योग, व्यापार, शिक्षा, वित्त, तकनीक,

मजदूरों के आह से बच तो कोई न पाएगा।

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डॉ. श्रीश पाठक  Image Source: India Today #मजदूरों_के_आह_से_बच_तो_कोई_न_पाएगा। आप और हम भी। हम जिस शर्मनाक सामाजिक - राजनीतिक व्यवस्था में जिए जा रहे थे, देखिए उसमें श्रमिकों की जगह क्या थी। ऐसा नहीं कि पता नहीं था हम सभी को श्रमिकों के हालात के बारे में लेकिन हम सभी को वे दिखते थे पर शायद महसूस होने बंद ही हो गए थे। लागत से कई गुना कमाने वाले क्या आज श्रमिकों के रहने, खाने और दवाई की व्यवस्था नहीं कर सकते थे, जिसपर सरकार कोर्पोरेट टैक्स की छूट दे देती या कुछ सहायता कर देती। मजदूर जान हथेली पर रखकर अपने घर जाना चाह रहे तो उसका कारण समझा जा सकता है लेकिन सरकारें उन्हें कहीं भेजना ही क्यों चाह रहीं? कहीं जाकर भी उन्हें क्या राहत मिलने वाली है। इसमें तो खतरा ही है, उन्हें भी और औरों को भी। राहत पैकेज से भारत की अर्थव्यस्था को जरा ग्लूकोज मिलने की उम्मीद है लेकिन जाहिर है इससे इन मजदूरों का कुछ भला नहीं होने वाला। श्रमिक सभी जगह खटता था, पर वह किसी को जैसे दिखता नहीं था और ना उन्हें ही कोई देखता था। चुनाव में उनकी खोज खबर जरूर ली जाती थी लेकिन बस इसलिए कि उनकी उँगलियाँ स्याही सोख लें। देश

कितना कुछ अनटच्ड रह जाता है न , टचस्क्रीन मोहब्बतों के दौर में l

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कितना कुछ अनटच्ड रह जाता है न , टचस्क्रीन मोहब्बतों के दौर में l Image Source: CBN फिर भी इंसान एक जिंदा शै है, उसकी जरूरतों की जिंदा वज़हें हैं l मोबाइल फ़ोन की सुर लय ताल पर ही सही पर भावनाएं बहती तो हैं, मन की सेल्फी पर किसी की लाइक का इंतज़ार रहता तो है l सहसा कनेक्ट हो उम्मीदें ट्रांसफर होने लग जाती हैं, दिल के टावर्स यहाँ वहाँ के सिग्नल पकड़ चैट में मशगूल हो अरमानों की डीपी बदलते रहते ही हैं l यों चलता रहता है, मन डरता रहता है, स्माइलीज से मुस्कान आ पाती तो सपने टूटने का डर वर्चुअल स्पेस से बाहर ना रिसता l #श्रीशउवाच

इंदिरा गाँधी व नरेंद्र मोदी: डिसाईजिव या डेकोरेटिव?

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डॉ. श्रीश पाठक  (कई स्तरों पर इंदिरा गाँधी और नरेंद्र मोदी की तुलना करना बेतुका होगा लेकिन विदेश नीति की जमीन इसके लिए आदर्श है।) Image Source: Gambheer Samachar राजनीति, निर्मम है। यह प्रशंसा व आलोचना दोनों की सीमा नहीं जानती। यहाँ, चर्चा ही चरम की होती है। अरुण जेटली ने इंदिरा गाँधी की तुलना हिटलर से की। यह तुलना, एक दूसरी तुलना की धारा का रुख बदलने के लिए की गयी थी, जिसमें नरेंद्र मोदी सरकार की कुछ कार्यप्रणालियों खासकर मीडिया मैनेजमेंट को देखते हुए दबे स्वर में उन्हें हिटलर सरीखा कहा गया। वैसे इंदिरा गाँधी को विश्व इतिहास के उतने पन्ने कभी हासिल नहीं होंगे, जितने हिटलर को आज भी होते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि आज ‘प्रचुर मोदीमय माहौल’ में भी इंदिरा अपनी ख्याति का ‘प्रासंगिक आयतन’ अवश्य घेरती हैं। राजनीति में तुलनाएँ होती ही हैं क्योंकि राजनीति में चयन की ही प्रतिष्ठा है और चयन में तुलनात्मक प्रज्ञा अपनी भूमिका निभाती है। विदेश नीति के संबंध में गाँधी परिवार के सभी प्रधानमंत्रियों में यकीनन इंदिरा गाँधी की उपलब्धियाँ सर्वाधिक हैं, वहीं गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों में नरेंद्र मोदी के