05/02/2020
पिछले बीस सालों में देश की सरकारों द्वारा देखिए बजट का कितना प्रतिशत स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च किया गया है. यही दो चीजें दुनिया की सबसे बेशकीमती रिसोर्स बनाती हैं और वह है ह्यूमन रिसोर्स. इन दो चीजों के साथ जनसंख्या बोझ नहीं, वरदान बन जाती है. जनसंख्या को कोसने वाले वही हैं जो स्वास्थ्य और शिक्षा का महत्व नहीं समझ रहे.
वैश्वीकरण और आर्थिक साझेदारी वाले विश्व में सभी देश समझते हैं कि अब अप्रत्यक्ष युद्ध का खतरा प्रत्यक्ष युद्ध के मुकाबले अधिक है. गैर पारंपरिक सुरक्षा भय अब अधिक महत्वपूर्ण हैं. पर जरा देखिए फिर से पिछले बीस सालों की सरकारों के रक्षा बजट को और उसमें भी हथियारों की खरीददारी पर और पूछिए भारत दुनिया के सर्वाधिक हथियार आयातक देशों में क्यों शामिल होता जा रहा. समझें, हथियार लॉबी अमेरिका की सरकार तक पर खासा असर रखती है और उनकी बस यही मजबूरी है कि कारखाने चलाते रहना है और हथियारों का बाजार तलाशते रहना है. फैसले जिनमें नागरिक हित नहीं है, वह कैसे लिये जा रहे?
खुद से भी पूछिएगा कि महान सरकारों की आवाजाही में कब ऐसा लगा कि शिक्षा और स्वास्थ्य सर्वसुलभ रहे? गुणवत्ता की बात अभी जाने ही दें!
मीडिया से भी पूछिए, रोज प्राइम टाइम और अखबारों की हेडिंग्स में ये प्रश्न क्यों नदारद रहते हैं?
बीस साल ही क्यूँ. आप और पीछे, बहुत पीछे भी जा सकते हैं, फिर ये भी पूछिएगा कि बदल क्या रहा था?
यों सरकारों का साझा चरित्र समझ आ जाएगा और ध्यान रहे सरकारें और मीडिया यों इसलिए हैं क्यूंकि हम यों हैं.
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