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Showing posts from May, 2020

Brainstorming about Ideologies

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Cartoon Source: CartoonStock डॉ. श्रीश पाठक  विचारधाराओं के बारे में कुछ बातें जानना बेहद जरूरी हैं। ♦️विचार तो सदा ही मनुष्य जाति की थाती रहे हैं लेकिन विचारधाराओं का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। ♦️किसी भी संज्ञा के साथ लगा - ism उसे विचारधारा नहीं बना देता। विचारधारा सिर्फ वह हो सकती है जो किसी भी मानव घटना की व्याख्या अपने पारिभाषिक संसाधनों से कर सके। ♦️हर विचारधारा की सीमा उसके निश्चित सैद्धांतिक संसाधन ही हैं, इसलिए किसी भी विचारधारा को अंतिम मान लेना दृश्य से अधिक लेंस को महत्व देने सरीखा है। ♦️अधिकाधिक विचारधाराएं किसी एक मानव घटना की कई परस्पेक्टिव से व्याख्या करने के काम में आती हैं, किसी एक व्याख्या को अंतिम मान लेना यह स्वयं की सीमा हो सकती है। ♦️विचारधारा का अतिवाद सबसे जघन्य है, इसने विश्व को दो-दो महायुद्ध दिए हैं और अनगिनत लोगों को लाशों में तब्दील किया है। ♦️कोई भी विचारधारा, स्वयम को सम्पूर्ण नहीं कह सकती। दरअसल कोई भी अवधारणा जो मानव के ऊपर आधारित हो, वह सम्पूर्ण नहीं हो सकती, क्योंकि मनुष्य चेतन है, महज जड़ पदार्थ नहीं है इसलिए लगातार परिवर्तन होता रहता है। ♦️अंततः क

महापुरुष वे होते हैं जिनकी अपनों की परिभाषा सुदीर्घ होती है

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डॉ. श्रीश पाठक  Image Source: INC विज्ञान अपने पहले चरम पर था और जहाँ विज्ञान नित नया चमत्कार कर पूराने चमत्कारों की जगह ले रहा था, उस शख़्स की पढ़ाई उसी भूगोल पर मुकम्मल हुई थी। बावजूद इसके उन्हें पता था कि इतिहासबोध कितना जरूरी है किसी राष्ट्र के विकास के लिए और अच्छा है कि नयी पीढ़ी विज्ञान के साथ साथ देश व दुनिया का सम्यक इतिहास जाने। एक पिता के रूप में उस शख्स ने अपनी बड़ी हो रही बिटिया के लिए जेल से खत लिखे जिससे बाद में 'ग्लिम्प्स ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री' और 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' जैसे किताबों की पृष्ठभूमि बनी । सालों की गुलामी, गरीबी और विभाजन के झुलसते नफ़रतों के बीच देश को गुटनिरपेक्ष आंदोलन का अगुआ बनाकर उस स्तर की विश्वशक्ति बनाया, जिसके ख्वाब आज के हुक्मरान भी देखें वो भी तब जब देश कटोरा नहीं बनाता था । जिस शख्स के मजबूत नेतृत्व में देश की संविधान निर्माण प्रक्रिया पूरी हुई और व्यापक मताधिकार के आधार पर पहला आम चुनाव सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ जबकि कमोबेश उसी समय आजाद हुए अन्य पड़ोसी देशों में यह प्रक्रिया हाल तक अधूरी रही है । देश के उद्योग, व्यापार, शिक्षा, वित्त, तकनीक,

मजदूरों के आह से बच तो कोई न पाएगा।

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डॉ. श्रीश पाठक  Image Source: India Today #मजदूरों_के_आह_से_बच_तो_कोई_न_पाएगा। आप और हम भी। हम जिस शर्मनाक सामाजिक - राजनीतिक व्यवस्था में जिए जा रहे थे, देखिए उसमें श्रमिकों की जगह क्या थी। ऐसा नहीं कि पता नहीं था हम सभी को श्रमिकों के हालात के बारे में लेकिन हम सभी को वे दिखते थे पर शायद महसूस होने बंद ही हो गए थे। लागत से कई गुना कमाने वाले क्या आज श्रमिकों के रहने, खाने और दवाई की व्यवस्था नहीं कर सकते थे, जिसपर सरकार कोर्पोरेट टैक्स की छूट दे देती या कुछ सहायता कर देती। मजदूर जान हथेली पर रखकर अपने घर जाना चाह रहे तो उसका कारण समझा जा सकता है लेकिन सरकारें उन्हें कहीं भेजना ही क्यों चाह रहीं? कहीं जाकर भी उन्हें क्या राहत मिलने वाली है। इसमें तो खतरा ही है, उन्हें भी और औरों को भी। राहत पैकेज से भारत की अर्थव्यस्था को जरा ग्लूकोज मिलने की उम्मीद है लेकिन जाहिर है इससे इन मजदूरों का कुछ भला नहीं होने वाला। श्रमिक सभी जगह खटता था, पर वह किसी को जैसे दिखता नहीं था और ना उन्हें ही कोई देखता था। चुनाव में उनकी खोज खबर जरूर ली जाती थी लेकिन बस इसलिए कि उनकी उँगलियाँ स्याही सोख लें। देश

कितना कुछ अनटच्ड रह जाता है न , टचस्क्रीन मोहब्बतों के दौर में l

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कितना कुछ अनटच्ड रह जाता है न , टचस्क्रीन मोहब्बतों के दौर में l Image Source: CBN फिर भी इंसान एक जिंदा शै है, उसकी जरूरतों की जिंदा वज़हें हैं l मोबाइल फ़ोन की सुर लय ताल पर ही सही पर भावनाएं बहती तो हैं, मन की सेल्फी पर किसी की लाइक का इंतज़ार रहता तो है l सहसा कनेक्ट हो उम्मीदें ट्रांसफर होने लग जाती हैं, दिल के टावर्स यहाँ वहाँ के सिग्नल पकड़ चैट में मशगूल हो अरमानों की डीपी बदलते रहते ही हैं l यों चलता रहता है, मन डरता रहता है, स्माइलीज से मुस्कान आ पाती तो सपने टूटने का डर वर्चुअल स्पेस से बाहर ना रिसता l #श्रीशउवाच

इंदिरा गाँधी व नरेंद्र मोदी: डिसाईजिव या डेकोरेटिव?

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डॉ. श्रीश पाठक  (कई स्तरों पर इंदिरा गाँधी और नरेंद्र मोदी की तुलना करना बेतुका होगा लेकिन विदेश नीति की जमीन इसके लिए आदर्श है।) Image Source: Gambheer Samachar राजनीति, निर्मम है। यह प्रशंसा व आलोचना दोनों की सीमा नहीं जानती। यहाँ, चर्चा ही चरम की होती है। अरुण जेटली ने इंदिरा गाँधी की तुलना हिटलर से की। यह तुलना, एक दूसरी तुलना की धारा का रुख बदलने के लिए की गयी थी, जिसमें नरेंद्र मोदी सरकार की कुछ कार्यप्रणालियों खासकर मीडिया मैनेजमेंट को देखते हुए दबे स्वर में उन्हें हिटलर सरीखा कहा गया। वैसे इंदिरा गाँधी को विश्व इतिहास के उतने पन्ने कभी हासिल नहीं होंगे, जितने हिटलर को आज भी होते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि आज ‘प्रचुर मोदीमय माहौल’ में भी इंदिरा अपनी ख्याति का ‘प्रासंगिक आयतन’ अवश्य घेरती हैं। राजनीति में तुलनाएँ होती ही हैं क्योंकि राजनीति में चयन की ही प्रतिष्ठा है और चयन में तुलनात्मक प्रज्ञा अपनी भूमिका निभाती है। विदेश नीति के संबंध में गाँधी परिवार के सभी प्रधानमंत्रियों में यकीनन इंदिरा गाँधी की उपलब्धियाँ सर्वाधिक हैं, वहीं गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों में नरेंद्र मोदी के

Three Things by Dr. Shreesh: PM Modi Addresses NAM Contact Group

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Three Things by Dr. Shreesh क्या है NAM संपर्क समूह? The Coordinating Bureau of the NAM सदस्य देशों के साथ पारस्परिक संपर्क और सहयोग की निरंतरता के लिए प्रयत्न करती रहती हैl The Coordinating Bureau of the NAM इस कार्य के लिए बनायीं गयीं विभिन्न वर्किंग कमेटीज, टास्क फोर्सेज, कांटेक्ट ग्रुप्स एवं अन्य कमेटीज की देखरेख करती रहती है l NAM संपर्क समूह, सदस्य देशों से संपर्क सूत्रों को अपडेट कर उन्हें आपस में सतत जोड़े रखने की कोशिश करती है l Image Source: www.narendramodi.in क्यों महत्वपूर्ण है Online Summit of NAM Contact Group? भारत की विदेश नीति की कोई भी विवेचना, NAM के उल्लेख के बिना पूरी नहीं हो सकती l शीत युद्ध के बाद नए-नवेले आजाद हुए देशों के लिए एक सक्रिय मंच के तौर पर इसकी उपयोगिता मद्धम पड़ती गयी क्योंकि अब दुनिया द्विध्रुवीय राजनीति के चंगुल से मुक्त हो गयी थी l शीत युद्ध के बाद भी चूँकि NAM के उद्देश्यों की पूर्ति अभी भी नहीं हो सकी है तो एक मंच के तौर पर इसकी उपयोगिता समाप्त नहीं हुई थी, और फिर भारतीय विदेश नीति की कुछ चुनिंदा प्रारम्भिक उपलब्धियां NAM के खाते से आयीं तो भारत

✍️तहजीब के मायने यों तो गहरे हो सकते थे पर फ़िलहाल पर्दादारी इसका शॉर्टकट है

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Manto Film  _____ कुछ लोग जिन्हें जमाना होशियार नहीं कहता वे इस तरकीब को कभी समझ नहीं पाते कि तरक्की के लिए कितनी ही दिखाई देने वाली चीजों को नज़रअंदाज किया जाता है और कितनी ही चीजें जबरन देखी जाती हैं, जो मौजूद में कहीं वज़ूद नहीं रखतीं। मंटो उनमें से रहे होंगे, जो ज़िंदगी भर न समझ पाए कि जो चीज जैसी है उसे वैसी ही लिख देने में हर्ज क्या है ! नज़र आने वाली हर शै को हर नज़र देख सके, जरूरी नहीं। यकीन मानिए दिमाग ही देखता है, आँखें बस गुलामी करती हैं। दीद, दिमाग की तो तसदीक़ आँख की। कुछ के पास नज़र होती है, वे देखते हैं और बयां करते हैं। और फिर ये जरूरी नहीं कि वह बयानात सबको पसंद आये।  अल्लामा इक़बाल का एक शेर है:  “तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा” तहजीब के मायने यों तो गहरे हो सकते थे पर फ़िलहाल पर्दादारी इसका शॉर्टकट है। सारी इज्जत इसी छुपाव में है, बनाव में है। मंटो की परेशानी एक और भी है। लेखक मंटो असल मंटो में फ़र्क़ नहीं बरत पाता। बहुतेरे बरत लेते हैं, शान से जीते हैं, लोग-बाग उनकी अदब करते हैं। मंटो एक जगह लिखते हैं कि-

लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिससे कम पर अब कुछ नहीं स्वीकारा जा सकता

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#लोकतंत्र_में_प्रश्न दुनिया भर में ऐसे लेख लिखे जा रहे, जहाँ पैंडेमिक की आड़ में लोकतांत्रिक अधिकारों को सिकोड़ने और सरकारों को सर्वाधिकारवादी बनाने की होड़ पर चिंता व्यक्त की जा रही। राज्य की स्थापना का जो सबसे प्रचलित सिद्धांत है उसमें जीवन की सुरक्षा का तर्क सबसे पहले दिया जाता है। इस हिसाब से नागरिकों की जान की सुरक्षा की खातिर संप्रभु का लोकतांत्रिक अधिकारों को बौना बनाना उतना नहीं खलता जब तक कि सुरक्षा सचमुच बेहतर हो पा रही हो। लेकिन सुरक्षा के प्राथमिक अधिकार से सम्मानजनक जीवन के अधिकार की यात्रा बड़े ही त्याग और कठिनाइयों से हुई है और इसलिए ही एक उपलब्धि के तौर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिससे कम पर अब कुछ नहीं स्वीकारा जा सकता। नीचे आज के टाईम्स ऑफ इंडिया के दो क्लिप्स लगा रहा हूँ। एक क्लिप में अतुल ठाकुर ने उन बीस देशों की तुलना की है जहाँ कोविड-19 के मामले लगभग एक समय में आने शुरू हुए थे और यह जानने की कोशिश की है कि आखिर ये देश इस महामारी से कितने बेहतर रीति से जूझ रहे हैं। यह स्टोरी कहती है कि 20 देशों में से 13 देशों ने भारत से बेहतर काम किया है और 5 देशों

बुद्ध एक व्यक्ति के विराट प्रकटीकरण की सम्भावना को सरल चरितार्थ कर रहे

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Image Source: BBC Hindi और सहसा उन्होंने बुद्ध के अवदान को नकारना शुरू किया है। उन्हें इसपर तर्क नहीं सुनना। उन्हें यह विश्वास दिलाया गया है कि बुद्ध की शिक्षा वेदों के विरुद्ध हैं। भला हो शंकर का जिन्होंने इस भारत भूमि को बचा लिया है अन्यथा यह भूमि बौद्ध भूमि में परिणत हो जाती। ऐसे आकस्मिक निष्कर्ष स्वाभाविक हैं जब दर्शन को अक्षरशः समझने की कवायद होती है। सिद्धार्थ के कितने ही शिक्षक सनातन धर्म के अलग अलग सम्प्रदायों से आते हैं। सिद्धार्थ सभी में रमते हैं और मध्यम मार्ग तक पहुंचते हैं। बुद्ध सरल भाषा में सोSम ही कह रहे। वेदांत के समानांतर ही यात्रा कर रहे। धर्म की तत्कालीन राजनीति को खारिज कर एक सामाजिक नैतिक विकल्प सुझा रहे। बुद्ध एक व्यक्ति के विराट प्रकटीकरण की सम्भावना को सरल चरितार्थ कर रहे। शुद्ध आध्यात्मिक मूल्यों में अद्भुत साम्य परिलक्षित होता है, इसमें काल, भूगोल और भाषा का अन्तर आने नहीं पाता। कबीर के राम निराकार हो जाते हैं तो बुद्ध अवतार मान लिए जाते हैं। रामकृष्ण ने जब यह जाना, परमहंस हुए। सनातन धारा निर्झर बहती है। इसकी एक बूंद में ही सागर है, यही निरखना है, यही समझना ह

स्कोप, फील्ड का नहीं, आपका होता है

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Image Source: Noktan बारहवीं के बाद क्या? मुझसे कई बार पूछा जाता है कि बच्चे को आगे क्या पढ़ाएँ, खासकर तब जब इंजीनियरिंग व मेडिकल का विकल्प ना चुनना हो। पूछते हैं कि किस क्षेत्र में कितना स्कोप है। मै बेधड़क कहता हूँ कि स्कोप फील्ड का नहीं स्टूडेंट का होता है। इंसान को हर फील्ड की जरूरत जबतक बनी हुई है, काबिल व्यक्ति की जरूरत भी बनी हुई है। आप होशियार हैं, मेहनती हैं और स्वयं में सुधार को तत्पर हैं तो कोई भी फील्ड आपकी जिंदगी बना सकता है। हर फील्ड को अपने सिकंदर की जरूरत होती है। इसके उलट कोई भी क्षेत्र बेहतरीन कैरियर की चकाचौंध सुरक्षा नहीं दे सकता। पड़ोस के किसी का कहीं सफल हो जाना आपके लिए भी उस क्षेत्र का बेहतरीन हो जाना नहीं साबित करता। आप, श्रम व लचीलेपन के लिए तैयार नहीं हैं तो किसी भी फील्ड में आपका स्कोप नहीं है। भविष्य का मामला है, कई बार जवाब देते नहीं बनता। ज़ाहिर है कैरियर के बारे में सवाल करते लोगों को शिक्षा के उद्देश्य पर प्रवचन नहीं किया जा सकता। लोगों को पैसा, सम्मान, सुरक्षा चाहिए ही होता है और इसमें कुछ गलत नहीं लेकिन ये तीनों गलत तरीके से भी जरूर कमाए जा सकते हैं।

मार्क्स का जन्मदिन

आज मार्क्स का जन्मदिन है. इस मौके पर कहना चाहता हूँ कि समाजवाद, वामपंथ, कम्युनिज्म और मार्क्सवाद एक-दूसरे से संबद्ध होते हुए भी स्वतंत्र अभीमुखीकरण रखते हैं. कहना यह भी है कि रूस में लेनिन ने जबरन वर्ग चेतना वेनगार्ड्स के माध्यम रोपित की और चीन में माओ ने यह मानते हुए कि कम्युनिज्म के बाद भी द्वन्दात्मक पदार्थवाद जारी रहता है और सतत क्रांति का सिद्धांत अपनाया; इसलिए रूस और चीन की सफलता और असफलता सीधे ही मार्क्सवाद की सफलता-असफलता नहीं है. मै बारंबार इस निष्कर्ष पर भी पहुंचता हूँ कि पूंजीवाद की जो विसंगतियाँ मार्क्सवाद ने चिन्हित कीं, उन्हीं पर काम करके पूंजीवाद ने कल्याणकारी राज्य का चोला पहना और वैश्वीकरण के रूप में आज समूचे विश्व में प्रभावी है. #श्रीशउवाच

#लोकतंत्र_में_प्रश्न

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मजदूर, तुम्हें कभी नागरिक नहीं समझा गया था। तुम्हें समझा गया था झमाझम वोटबैंक। तुमने जाना भी नहीं कभी होता क्या है, नागरिक होना यह अश्लील चुटकुला भी तुम तक शिद्दत से नहीं पहुँचा कि तुम भी जनार्दन हो, जनता तो हो ही। तुम नहीं समझ पा रहे आज कि तुम मानव संसाधन हो किसी राष्ट्र के या घंटे-घंटे के श्रम मात्र हो देशभक्त उद्योगपतियों के। दुनिया के फेफड़े पर आज जब आयी हुई है शामत, तुम अब भी अपना पेट टटोल रहे हो तुम्हारी यह विडंबना, दो टाईम हाजमोला खाने वाले नहीं समझते और वे ही आज नहीं समझ रहे क्या होता है लोकतंत्र में प्रश्न होना, प्रश्न करना। 05/05/2020 #श्रीशउवाच

मुझे अपनी नाकामियाँ भी कम प्रिय नहीं हैं, उनमें भी मै ही हूँ।

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04/05/2013 Image Source: The Ranch मुझे जीवन में एक पग भी चलना निरर्थक नहीं लगता। दिशाहीन हो भटकना भी कुछ अर्थ लिए होता है। अनुभव से कह सकता हूँ, जिसे लोग गलतियाँ कह देते हैं, गहरे में जानता हूँ उन्हीं से मुझे ताकत भी मिलती रही है। मै ये जानता हूँ, जो फैसले लिए जा चुके हैं,वे गलत नहीं हो सकते है।नज़रिये की बात है। हाँ, थोड़ा बाद में समझ आता है! जो बीत गया, उसे कोसना स्वयं को और भी कमजोर करना है। आज, अभी जो है क्या वो उपलब्धि नहीं है और जो कुछ भी है अभी उसे पाने में यदि आप सोचते हैं केवल सही निर्णयों का योगदान है तो यकीनन आप पक्षपाती हो रहे हैं ! व्यतीत-अतीत उपलब्धि ही है। वर्तमान, प्रकृति का उपहार है, जिसमें हम सर्वाधिक शक्तिशाली हैं और भविष्य मोहक आशा है प्रेरणा है। सकारात्मक होना स्वीकारना है सर्वस्व को। इसमें क्या बुरा है। मुझे अपनी नाकामियाँ भी कम प्रिय नहीं हैं, उनमें भी मै ही हूँ। वे भी मुझे सम्पूर्ण बनाते हैं। #श्रीशउवाच