अध्यापक एवं ऑनलाइन माध्यम

डॉ. श्रीश पाठक* कोरोना महामारी के बीच जहाँ अब लोग घरों से निकल जीवन के जद्दोजहद में एक बार फिर से जुट गए हैं, वहीं विधार्थियों की पीढ़ी को अभी भी भौतिक दूरीकरण निभाते हुए विद्यालयों, विश्वविद्यालयों से यथासंभव दूर ही रखने का प्रयास किया जा रहा। शिक्षा के आदान-प्रदान की प्रक्रिया में पारस्परिक अंतःक्रिया का महत्त्व प्रारंभ से ही पूरी दुनिया में स्थापित है l भौतिक दूरीकरण की विवशता ने शिक्षातंत्र के समक्ष यह भारी चुनौती पेश कर दी कि आखिर पारस्परिकता से लबालब कक्षाएँ अब कैसे हो सकेंगी l शिक्षातंत्र के ठिठकने का अर्थ होता, एक पूरी पीढ़ी के भविष्य की तैयारियों का ठिठकना और यह राष्ट्र के भविष्य पर भी प्रतिगामी असर छोड़ता। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनिओ गुतरेस ने कहा कि- विद्यालयों के बंद होने की वजह से दुनिया पीढ़ीगत त्रासदी से जूझ रही है l तकनीक ने यह चुनौती स्वीकार की और शिक्षा जगत ऑनलाइन कक्षाओं की ओर मुड़ गया l चूँकि चुनौती सहसा आयी थी तो जाहिर है इसकी तैयारी कोई मुकम्मल तो थी नहीं। इससे पहले ऑनलाइन कक्षाओं को अनुपूरक माध्यम की तरह ही सराहा गया था और दुनिया भर के शिक्षाविद इसे एक मजबूत वै