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राजनीति विशेषज्ञ प्रभु दत्त शर्मा को अंतिम प्रणाम

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20/04/2020 उन दिनों (2002-05) जब मैं स्नातक का विद्यार्थी था गोरखपुर विश्वविद्यालय में तो राजनीति शास्त्र विषय से बहुत परेशान रहा करता था। सीनियर यथासम्भव समझाने के बाद अंततः कोटेशन रटने को कहते थे जो बीए में नंबर लाना है तो, बात सच भी थी, मूल्यांकन यों ही होता था। राजनीति के एक-दो अध्यापकों को छोड़कर किसी के बारे में क्या ही कुछ कहना, प्रणाम। आज सोचता हूँ कि सरकारी विश्वविद्यालय में नौकरी (योग्यता/अयोग्यता  के बाद भी) इतने पापड़ बेलने के बाद मिलती है तो अब उस जीव से और अधिक क्या ही उम्मीद करना। उन दिनों राजनीतिक विचारकों को समझना एक अलग ही स्वैग था। प्रकाशक-लेखक स्टार्ट-अप विधान में लिखी हुई कई किताबें थीं, जिनमें हर तीसरी पंक्ति में एक कोटेशन दिया होता था। परीक्षा में अंक के लिए तो वे यकीनन आदर्श थीं, लेकिन अंततः समझ नहीं आता था कुछ। क्या, कुछ, क्यों मन में बेचैन होकर बौखलाये से उमड़ते रहते थे। अपने यहाँ बक्शीपुर के पुस्तक विक्रेता कई बार स्पष्ट बताते थे कि कौन सी पुस्तक आपके लिए ठीक है। मैंने अपने किसी सीनियर से कहीं सुना कि पी डी शर्मा की बुक मिल जाए तो बहुत बढ़िया है थाॅट के लिए।