U Bookish?

24/04/2020 Image Source: A Bookishhome सबसे ज्यादा बुरा तब लगता है जब कोई # बुकिश कह देता है। जबकि किताबें तैयार होने में केवल मेज, कुर्सी, कलम नहीं मांगतीं, उनमें लगा होता है कितना ही पसीना, रोजमर्रा के दुर्घर्ष और गिर-गिर कर उठ जाने का माद्दा. इसके बाद किताब लिखने के लिए एक शोध और एक अनुशासित पद्धति भी चाहिए होती है। कल कोई पुस्तक दिवस था। अच्छा लगा, लोग पढ़ते हैं किताबें, मानते हैं कि किताबों ने उन्हें संवारा है, कम से कम घर का एक कोना देना तो चाहते ही हैं किताबों को। जिंदगी इतनी बड़ी है और इसमें इतना कुछ है कि अकेले और एक जीवन नाकाफी है इसे देखने के लिए। किताबें हमारी आँखें बनतीं हैं चुपचाप। हम सभी ही अपने-अपने यथार्थ में होते हैं और दुनिया को करीब से देख रहे होते हैं। चीजें, सभी को अपने तईं समझ आती ही हैं। लेकिन जैसे अपने शहर के मौसम और मिजाज को देख आप अपने देश का मौसम नहीं बता सकते, आपको जरूरत होती है मौसम विज्ञानी की, यों ही हम सभी को ताउम्र जरूरत होती है किताबों की। किताबों से हम बिना झुर्रियाँ बढ़ाये अपने जेहन की उम्र बढ़ा लेते हैं, इसके बगैर एक ऐसा अंधापन दिलोदिमाग पर चस्प