जिंदगी के स्वप्न फिर फिर आँख में पलने लगे हैं…!

जिंदगी के स्वप्न फिर फिर आँख में पलने लगे हैं…! डॉ. श्रीश पाठक* वही लाल सूरज जो कल शाम डूबा था, अल सुबह उगने को है l ये नवजात लाल सूरज ताजे चौबीस घंटों की नयी सौगात बेदम हिम्मतों को देने को आतुर है l उम्मीदों की सुतली को इतनी चिंगारी काफी है कि सुबह होगी, लाल सूरज फिर खिलेगा l डटे रहने के लिए, इतना आसमान काफी है कि मौसम बदलेगा l चमकते तारों के दीदार को रात के काले अँधेरे की दरकार होती है l अपने-अपने घरों में डटे हम लोग आजकल जिंदगी को जरा ज्यादा करीब से महसूस कर पा रहे हैं, अब इस मज़बूरी की अंधियारी रात में साथ के चमकते तारों को तो ढूँढना होगा l ये वही लोग हैं, जिनके साथ सुख सुकून शांति से रहने के लिए हम सहूलियतें जुटाते हुए दरबदर बाहर भटकते रहे हैं l कहीं पहुँचने के लिए दौड़ना तेज था, अब तेजी के लिए रोज दौड़े जा रहे हैं, लगी इस लत को समझने के लिए जिस ठहराव की जरुरत थी, उस ठहराव में हैं हम l यह ठहराव हमें अवसर दे रहा पुनरावलोकन का l Dainik Bhaskar (Aha Zindgi) स्मृति तो हर जीव में न्यूनाधिक होती है लेकिन मनुष्य, कल्पना का वरदान लिए जन्मता है l स्मृति के सहयोग से कल्पना, मनुष्य में भविष्य