#YesIMSecular

Satish Acharya अब तो नहीं ही है लेकिन काफी लंबे समय तक इसका जरूर फर्क़ पड़ता था कि जिससे मिल रहा हूँ या बात कर रहा हूँ, वह किस जाति और धर्म का है। एक गाढ़ा पूर्वाग्रह रहता ही था। फिर कितने ही लोगों से मौका मिला और अलग-अलग लोग एक-एक कर कितने ही पूर्वाग्रह तोड़ते चले गए। सौभाग्य से बेहतर पढ़ने को मिला तो और भीतर से कई पूर्वाग्रह टूटे। सेकुलर होना मेरे लिए अब एक कोई राजनीतिक स्टैंड नहीं है। यह अब जीवनशैली का हिस्सा है। आसान नहीं है क्योंकि जाति और धर्म, अपने देश की राजनीति की कबाड़ साइकल के कभी न पंक्चर होने वाले दो पहिए हैं और लगभग हर दल को चुनाव में इसी जैसी एक साइकल पर सवार होने की आदत पड़ गई है, तो लगभग हर चुनाव के आसपास ऐसा जरूर कुछ होता या किया या कराया जाता है जिसकी वज़ह से जाति और धर्म के आधार पर नफरत जरूर बह रही होती है। उस बयार में भ्रामक सूचनाएँ बांटी जाती हैं और ऐसे में एक तार्किक व्यक्ति भी कब विक्टिम से परपीट्रेटर बन जाता है, पता ही नहीं चलता। बचपन में नहीं जानता था, काफी बाद में सहसा मैंने पूछा और पापा जी ने बताया था कि मेरा यह संस्कृत नाम श्रीश, मेरे पहले स्कूल 'इंडियन