लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिससे कम पर अब कुछ नहीं स्वीकारा जा सकता

#लोकतंत्र_में_प्रश्न दुनिया भर में ऐसे लेख लिखे जा रहे, जहाँ पैंडेमिक की आड़ में लोकतांत्रिक अधिकारों को सिकोड़ने और सरकारों को सर्वाधिकारवादी बनाने की होड़ पर चिंता व्यक्त की जा रही। राज्य की स्थापना का जो सबसे प्रचलित सिद्धांत है उसमें जीवन की सुरक्षा का तर्क सबसे पहले दिया जाता है। इस हिसाब से नागरिकों की जान की सुरक्षा की खातिर संप्रभु का लोकतांत्रिक अधिकारों को बौना बनाना उतना नहीं खलता जब तक कि सुरक्षा सचमुच बेहतर हो पा रही हो। लेकिन सुरक्षा के प्राथमिक अधिकार से सम्मानजनक जीवन के अधिकार की यात्रा बड़े ही त्याग और कठिनाइयों से हुई है और इसलिए ही एक उपलब्धि के तौर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिससे कम पर अब कुछ नहीं स्वीकारा जा सकता। नीचे आज के टाईम्स ऑफ इंडिया के दो क्लिप्स लगा रहा हूँ। एक क्लिप में अतुल ठाकुर ने उन बीस देशों की तुलना की है जहाँ कोविड-19 के मामले लगभग एक समय में आने शुरू हुए थे और यह जानने की कोशिश की है कि आखिर ये देश इस महामारी से कितने बेहतर रीति से जूझ रहे हैं। यह स्टोरी कहती है कि 20 देशों में से 13 देशों ने भारत से बेहतर काम किया है और 5 देशों