Posts

Showing posts from May 7, 2020

लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिससे कम पर अब कुछ नहीं स्वीकारा जा सकता

Image
#लोकतंत्र_में_प्रश्न दुनिया भर में ऐसे लेख लिखे जा रहे, जहाँ पैंडेमिक की आड़ में लोकतांत्रिक अधिकारों को सिकोड़ने और सरकारों को सर्वाधिकारवादी बनाने की होड़ पर चिंता व्यक्त की जा रही। राज्य की स्थापना का जो सबसे प्रचलित सिद्धांत है उसमें जीवन की सुरक्षा का तर्क सबसे पहले दिया जाता है। इस हिसाब से नागरिकों की जान की सुरक्षा की खातिर संप्रभु का लोकतांत्रिक अधिकारों को बौना बनाना उतना नहीं खलता जब तक कि सुरक्षा सचमुच बेहतर हो पा रही हो। लेकिन सुरक्षा के प्राथमिक अधिकार से सम्मानजनक जीवन के अधिकार की यात्रा बड़े ही त्याग और कठिनाइयों से हुई है और इसलिए ही एक उपलब्धि के तौर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिससे कम पर अब कुछ नहीं स्वीकारा जा सकता। नीचे आज के टाईम्स ऑफ इंडिया के दो क्लिप्स लगा रहा हूँ। एक क्लिप में अतुल ठाकुर ने उन बीस देशों की तुलना की है जहाँ कोविड-19 के मामले लगभग एक समय में आने शुरू हुए थे और यह जानने की कोशिश की है कि आखिर ये देश इस महामारी से कितने बेहतर रीति से जूझ रहे हैं। यह स्टोरी कहती है कि 20 देशों में से 13 देशों ने भारत से बेहतर काम किया है और 5 देशों

बुद्ध एक व्यक्ति के विराट प्रकटीकरण की सम्भावना को सरल चरितार्थ कर रहे

Image
Image Source: BBC Hindi और सहसा उन्होंने बुद्ध के अवदान को नकारना शुरू किया है। उन्हें इसपर तर्क नहीं सुनना। उन्हें यह विश्वास दिलाया गया है कि बुद्ध की शिक्षा वेदों के विरुद्ध हैं। भला हो शंकर का जिन्होंने इस भारत भूमि को बचा लिया है अन्यथा यह भूमि बौद्ध भूमि में परिणत हो जाती। ऐसे आकस्मिक निष्कर्ष स्वाभाविक हैं जब दर्शन को अक्षरशः समझने की कवायद होती है। सिद्धार्थ के कितने ही शिक्षक सनातन धर्म के अलग अलग सम्प्रदायों से आते हैं। सिद्धार्थ सभी में रमते हैं और मध्यम मार्ग तक पहुंचते हैं। बुद्ध सरल भाषा में सोSम ही कह रहे। वेदांत के समानांतर ही यात्रा कर रहे। धर्म की तत्कालीन राजनीति को खारिज कर एक सामाजिक नैतिक विकल्प सुझा रहे। बुद्ध एक व्यक्ति के विराट प्रकटीकरण की सम्भावना को सरल चरितार्थ कर रहे। शुद्ध आध्यात्मिक मूल्यों में अद्भुत साम्य परिलक्षित होता है, इसमें काल, भूगोल और भाषा का अन्तर आने नहीं पाता। कबीर के राम निराकार हो जाते हैं तो बुद्ध अवतार मान लिए जाते हैं। रामकृष्ण ने जब यह जाना, परमहंस हुए। सनातन धारा निर्झर बहती है। इसकी एक बूंद में ही सागर है, यही निरखना है, यही समझना ह