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Showing posts from May 11, 2020

कितना कुछ अनटच्ड रह जाता है न , टचस्क्रीन मोहब्बतों के दौर में l

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कितना कुछ अनटच्ड रह जाता है न , टचस्क्रीन मोहब्बतों के दौर में l Image Source: CBN फिर भी इंसान एक जिंदा शै है, उसकी जरूरतों की जिंदा वज़हें हैं l मोबाइल फ़ोन की सुर लय ताल पर ही सही पर भावनाएं बहती तो हैं, मन की सेल्फी पर किसी की लाइक का इंतज़ार रहता तो है l सहसा कनेक्ट हो उम्मीदें ट्रांसफर होने लग जाती हैं, दिल के टावर्स यहाँ वहाँ के सिग्नल पकड़ चैट में मशगूल हो अरमानों की डीपी बदलते रहते ही हैं l यों चलता रहता है, मन डरता रहता है, स्माइलीज से मुस्कान आ पाती तो सपने टूटने का डर वर्चुअल स्पेस से बाहर ना रिसता l #श्रीशउवाच

इंदिरा गाँधी व नरेंद्र मोदी: डिसाईजिव या डेकोरेटिव?

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डॉ. श्रीश पाठक  (कई स्तरों पर इंदिरा गाँधी और नरेंद्र मोदी की तुलना करना बेतुका होगा लेकिन विदेश नीति की जमीन इसके लिए आदर्श है।) Image Source: Gambheer Samachar राजनीति, निर्मम है। यह प्रशंसा व आलोचना दोनों की सीमा नहीं जानती। यहाँ, चर्चा ही चरम की होती है। अरुण जेटली ने इंदिरा गाँधी की तुलना हिटलर से की। यह तुलना, एक दूसरी तुलना की धारा का रुख बदलने के लिए की गयी थी, जिसमें नरेंद्र मोदी सरकार की कुछ कार्यप्रणालियों खासकर मीडिया मैनेजमेंट को देखते हुए दबे स्वर में उन्हें हिटलर सरीखा कहा गया। वैसे इंदिरा गाँधी को विश्व इतिहास के उतने पन्ने कभी हासिल नहीं होंगे, जितने हिटलर को आज भी होते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि आज ‘प्रचुर मोदीमय माहौल’ में भी इंदिरा अपनी ख्याति का ‘प्रासंगिक आयतन’ अवश्य घेरती हैं। राजनीति में तुलनाएँ होती ही हैं क्योंकि राजनीति में चयन की ही प्रतिष्ठा है और चयन में तुलनात्मक प्रज्ञा अपनी भूमिका निभाती है। विदेश नीति के संबंध में गाँधी परिवार के सभी प्रधानमंत्रियों में यकीनन इंदिरा गाँधी की उपलब्धियाँ सर्वाधिक हैं, वहीं गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों में नरेंद्र मोदी के