मजदूरों के आह से बच तो कोई न पाएगा।

डॉ. श्रीश पाठक Image Source: India Today #मजदूरों_के_आह_से_बच_तो_कोई_न_पाएगा। आप और हम भी। हम जिस शर्मनाक सामाजिक - राजनीतिक व्यवस्था में जिए जा रहे थे, देखिए उसमें श्रमिकों की जगह क्या थी। ऐसा नहीं कि पता नहीं था हम सभी को श्रमिकों के हालात के बारे में लेकिन हम सभी को वे दिखते थे पर शायद महसूस होने बंद ही हो गए थे। लागत से कई गुना कमाने वाले क्या आज श्रमिकों के रहने, खाने और दवाई की व्यवस्था नहीं कर सकते थे, जिसपर सरकार कोर्पोरेट टैक्स की छूट दे देती या कुछ सहायता कर देती। मजदूर जान हथेली पर रखकर अपने घर जाना चाह रहे तो उसका कारण समझा जा सकता है लेकिन सरकारें उन्हें कहीं भेजना ही क्यों चाह रहीं? कहीं जाकर भी उन्हें क्या राहत मिलने वाली है। इसमें तो खतरा ही है, उन्हें भी और औरों को भी। राहत पैकेज से भारत की अर्थव्यस्था को जरा ग्लूकोज मिलने की उम्मीद है लेकिन जाहिर है इससे इन मजदूरों का कुछ भला नहीं होने वाला। श्रमिक सभी जगह खटता था, पर वह किसी को जैसे दिखता नहीं था और ना उन्हें ही कोई देखता था। चुनाव में उनकी खोज खबर जरूर ली जाती थी लेकिन बस इसलिए कि उनकी उँगलियाँ स्याही सोख लें। देश