अभागा अफगानिस्तान, बेबस अफगानी

डॉ. श्रीश कुमार पाठक अगस्त के जिस दिन राजधानी दिल्ली से हमारे प्रधानमत्री आजादी के 75वें साल का स्वागत कर रहे थे, उसी दिन आतंकवादी लड़ाकों का संगठन तालिबान अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल को अपने शिकंजे में कस रहा था. इसी अगस्त के महीने में अफ़ग़ानिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस भी मनाता है और वह आजादी इस मुल्क ने अंग्रेजों से जीती थी, भारत के आजादी पाने के भी कोई 28 साल पहले ही. दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका जिसने करीब-करीब तालिबान को नेस्तानबुद कर दिया था, वह बीते 15 अगस्त से काबुल के दूतावास से अपने अधिकारियों और कर्मचारियों को सुरक्षित निकालने की कवायद में है. दुर्दांत तालिबान के काबुल पर कब्जे को देखते हुए आम अफगानी कितने दहशत में हैं कि पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे वे अमेरिकी एयरफ़ोर्स प्लेन में किसी भी तरह लद-फद कर अपने देश से निकलना चाहते हैं. अफगानी औरतें जानती हैं कि तालिबान के साये में मुल्क का मंजर कैसा होगा, वे खुद नहीं निकल सकतीं पर अपने कलेजे के टुकड़ों को वे दीवार के उसपार अमेरिकी सैनिकों की ओर फेंक रही थीं ताकि शायद उनके मुस्तकबिल में बेशक जुदाई और दर्द हो पर तालिबान न हो.