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गणतंत्र दिवस विशेष: प्रजा नहीं, नागरिक बनना है हमें!

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 प्रजा नहीं, नागरिक बनना है हमें! डॉ. श्रीश  दुनिया भर में एक जमाने में राजा लोग शासन करते थे। एक से एक राजा होते थे। कुछ अच्छे, ज्यादातर खराब होते थे। प्रजा उनसे थर-थर काँपती थी। कमोबेश सारे राजा एक-जैसे ही होते थे। हर राजा के लिए उसका अपना मान-अपमान देश का मान-अपमान होता था। प्रजा भी ऐसा ही समझती थी। प्रजा, राजा से प्यार करे न करे उसका मान करती थी क्योंकि सब कुछ राजा से ही था। राजा नहीं तो राज नहीं, राज नहीं तो राज्य नहीं, राज्य नहीं तो प्रजा कहाँ! राजा भी ऐसे जो सरेआम कहते थे - आई एम द स्टेट।  राजा मानकर चलते कि पैदायशी उनमें खासियत है, ईश्वर ने इसलिए ही उन्हें राजकुमार बनाया है। बाकी प्रजा उनकी सेवा के लिए है। यह बात बहुत स्पष्ट और मानी हुई थी कि सब कुछ राजा के लिए है। कहीं कुछ अपवाद भी हुए विश्व में, पर वे अपवाद ही हुए कुछ-कुछ समय के लिए। ज्यादातर राजतंत्रों में प्रजा एक पैर पर हाथ जोड़े खड़े मिलती। तब राजा के लिए कुर्बान होना, उस परिवार के लिए वैसे ही गर्व की बात होती जैसे आज एक सैनिक का परिवार और समाज गर्व करता है उसकी वतन पर कुर्बानी की। प्रजा, राजा से प्रायः भयभीत रहा करती।