भारत भी अपने #इतिहास और #भूगोल को नजरअंदाज करके किसी भी मुद्दे पर #स्टैंड या #साइड नहीं ले सकता है।
Having ideological commitment while analysing #world_politics is naive. एक अजीब चीज होने लगी है। यह पहले घरेलू राजनीतिक मुद्दों पर ही होती रही है लेकिन अब विश्व राजनीति के मुद्दों पर भी वही #सँकरापन देखने को मिल रहा है। कुछ मित्रों ने यूक्रेन और पश्चिम का पक्ष लिया है तो उन्हें, उनके कुछ मित्रों ने #अमित्र कर दिया है और कुछ मित्रों ने रूस का पक्ष लिया है तो भी उन्हें उनके कुछ मित्रों ने अमित्र कर दिया है। इस बहाने कुछ कहने का मन है। 1. यह पक्षधरता एक सीमा तक घरेलू राजनीति में समझ आती है लेकिन विश्व राजनीति में यह #बचकाना है। कारण सीधा है - किसी पक्षधरता में इतनी हिम्मत नहीं जो किसी देश से उसके अपने हितों से परे जाकर कुछ करवा सके। 2. विश्व राजनीति को समझने के लिए बहुतेरे सिद्धांत हैं, उनकी जरूरत है क्योंकि उनकी जानकारी के अभाव में ही हम चीजों को बहुत #व्यक्तिगत हो देखने लगते हैं। 3. बहुत बेसिक बात है लेकिन जरूरी है दुहराना। विश्व राजनीति में कोई देश किसी के लिए स्थायी मित्र या स्थायी शत्रु नहीं होता। हित ही स्थायी होते हैं। इसलिए ही किसी देश की विदेश नीति दो कारकों से व्याख्यायित होती