रूस-यूक्रेन संघर्ष: आक्रमण को नहीं जायज़ ठहराया जा सकता!
विश्व राजनीति के बहुतेरे मौक़े ऐसे कि उन्हें बस यथार्थवादी सिद्धांत से समझ सकते हैं। उदारवाद और मार्क्सवाद तो हाँफते नज़र आते हैं। हाँ, सामाजिक निर्मितिवाद ( Social constructivism) ज़रूर एक सीमा तक एक नज़रिया दे पाता है जिसके अनुसार राज्य क्रमशः वही करते हैं जैसे उनके समाज उन्हें निर्देश देते हैं। अब जबकि रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया है, यह एक सरल स्पष्टीकरण है कि अमरीका सहित यूरोप ने रूस को कभी सहज नहीं होने दिया। रूस के इस कदम में कोई वैश्विक हित तो है नहीं, मुझे तो इसमें भविष्य में रूस का हित भी नहीं दिखता। यथार्थवाद कहता है कि ’अपनी सुरक्षा आप’, ‘उत्तरजीविता’ और ‘राज्यवाद’ (Self-help, Survival and Statism) की नीति ही विश्व राजनीति में ध्रुव सत्य है। अब देखिए यों तो रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए अपने जिस परम मित्र चीन के द्वारा आयोजित शीतकालीन ओलम्पिक के समापन तक का इंतज़ार किया, उसके साथ यूक्रेन मेखला एवं मार्ग परियोजना (Belt and Road initiative) में भागीदार है। लेकिन चीन की भूमिका देखिए। यह भी देखिए कि इस समय जिस पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान इस समय मास्को में ‘ख़ासा